छतियाने पर आपने चिठ्ठाकारों की कई कवितायें और संस्मरण पढ़े आज पढ़िये, हैदराबाद के सुप्रसिद्ध और मेरे प्रिय दैनिक हिन्दी मिलाप में दिनांक 14-05-2006 को प्रकाशित मातृत्व दिवस पर सुधांशु उपाध्याय की सुन्दर कविता :
"अम्मा "
(एक कथा गीत )
थोड़ी थोड़ी सी धूप निकलती थोड़ी बदली छाई है
थोड़ी थोड़ी सी धूप निकलती थोड़ी बदली छाई है
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
शॉल सरक कर कांधों से उजले पावों तक आया है
यादों के आकाश का टुकड़ा फ़टी दरी पर छाया है
पहले उसको फ़ुर्सत कब थी छत के उपर आने की
उसकी पहली चिंता थी घर को जोड़ बनाने की
बहुत दिनों पर धूप का दर्पण देख रही परछाई है
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
सिकुड़ी सिमटी उस लड़की को दुनियां की काली कथा मिली
पापा के हिस्से का कर्ज़ मिला सबके हिस्से की व्यथा मिली
बिखरे घर को जोड़ रही थी काल-चक्र को मोड़ रही थी
लालटेन सी जलती बुझती गहन अंधेरे तोड़ रही थी
सन्नाटे में गुंज रही वह धीमी शहनाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
दूर गांव से आई थी वह दादा कहते बच्ची है
चाचा कहते भाभी मेरी फ़ुलों से भी अच्छी है
दादी को वह हंसती-गाती अनगढ़-सी गुड़िया लगती थी
छोटा में था- मुझको तो वह आमों की बगिया लगती थी
जीवन की इस कड़ी धूप में अब भी वह अमराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
नींद नहीं थी लेकिन थोड़े छोटे छोटे सपने थे
हरे किनारे वाली साड़ी गोटे गोटे सपने थे
रात रात भर चिड़िया जगती पत्ता पत्ता सेती थी
कभी कभी आंचल का कोना आँखों पर धर लेती थी
धुंध और कोहरे में डुबी अम्मा एक तराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
हंसती थी तो घर में घी के दीए जलते थे
फ़ूल साथ में दामन उसका थामे चलते थे
धीरे-धीरे घने बाल वे जाते हुए लगे
दोनो आँखो के नीचे दो काले चाँद उगे
आज चलन से बाहर जैसे अम्मा आना पाई है!
पापा को दरवाजे तक वह छोड़ लौटती थी
आंखो में कुछ काले बादल जोड़ वह लौटती थी
गहराती उन रातों में वह जलती रहती थी
पूरे घर में किरन सरीखी चलती रहती थी
जीवन में जो नहीं मिला उन सब की मां भरपाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
बड़े भागते वह तीखे दिन वह धीमी शांत बहा करती थी
शायद उसके भीतर दुनिया कोइ और रहा करती थी
खूब जतन से सींचा उसने फ़सल फ़सल को खेत खेत को
उसकी आंखे पढ़ लेती थी नदी-नदी को रेत रेत को
अम्मा कोई नाव डुबती बार बार उतराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!
मां पर लिखी कुछ और कवितायें :
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर कविता है।
अच्छी कविता एवं भाव हैं.
समीर लाल
बहुत सुन्दर कविता है। अपने ब्लाग पर मेरे ब्लाग का लिंक देने का धन्यवाद ।
एक टिप्पणी भेजें