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मंगलवार, मार्च 28, 2006

हिन्दी मे सुधार के लिये एक सुझाव

हिन्दी भाषा में सुधार के लिये अहमदाबाद के अजय दयालजी (दयाळजी) देसाई ने अपने विचार एवं सुझाव विकीपिडीया के हाल की घटनायें वाले कॉलम में तथा अपनी साईट पर एक लेख लिखा है, पढने लायक है (??? ) कहीं कहीं तो उनके सुझावों पर हँसी आती है, उनका सबसे पहला सुझाव है कि अक्षरों के उपर से लाईन निकाल देनी चाहिये ....आगे आप खुद ही पढ़िये.

रविवार, मार्च 12, 2006

इस तस्वीर को पहचानो


क्या आप इस तस्वीर को पह्चानते है? यह तस्वीर भारत के उन महान वेज्ञानिक की है जिन्होने सुचना ओर सँचार क्रान्ति के लिये एक महत्वपुर्ण खोज की परन्तु उस शोध का श्रेय आज दुनिया किसी ओर वेज्ञानिक को देती है,......नही पहचाना ना!!
यह तस्वीर डा.(सर) जगदीश चन्द्र बोस की हे जिन्होने रेडियो एवँ ट्रान्समीटर की खोज की परन्तु उस शोध का श्रेय मारकोनी को मिला.
यह तस्वीर 1897 मे कलकत्ता के टाउन हाल मे उस वक्त खीची गई तब डा बोस अपने वायरलेस यन्त्र का प्रदर्शन कर रहे थे. समारोह के मुख्य अथिती थे बन्गाल के गवर्नर जनरल सर एलकसन्डर मेकेन्ज़ी. उस समारोह मे डा बोस ने सफलतापुर्वक अपनी खोज को प्रदर्शित किया.
30 नवम्बर 1858 को बँगाल के मेमनसिन्घ मे जन्मे डा बोस ने ट्रांसमीटर ओर रेडियो के अलावा पेड पौधों पर भी कई शोध की, उन्होने ही सबसे पहले दुनिया को बताया कि पेड पौधों को अगर नियमित सँगीत सुनाया जाये तो वे ज्यादा तेजी से बढते हे ओर उन पर फल फुल भी ज्यादा लगते हे.
1898 मे डा बोस ने अपने बनाये हुए टेलीग्राफ़ यन्त्र को ईन्ग्लेन्ड की रोयल सोसायटी को बताया, प्रयोग किया ओर यन्त्र भेट किया परन्तु पेटेन्ट लेने की कोशिश नही की, क्यो कि कोई भी खोज उनके लिये पैसा एकत्रित करने का माध्यम नही था, यहाँ तक कि उन्होने कविवर गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को पत्र लिखा कि " युरोप के कई धनी लोग मुझे मेरे अविष्कार के लिये मेँ जितना धन चाहुँ उतना देने के लिये तैयार है परन्तु मुझे प्रसिध्धी ओर धन मे रुचि नही हे ". यह बात मारकोनी को पता चली जो कि ट्रान्समीटर बनाने की कई असफल कोशिश कर चुके थे, मार्कोनी ने डा बोस की डिजाईन से थोडा सा फरक रख कर रेडियो को पेटेन्ट करवा लिया. इससे मारकोनी को रेडियो के शोधक के रुप मे प्रसिद्धि मिली परन्तु डा बोस को.......???