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शुक्रवार, जून 30, 2006

अलविदा चिठ्ठा जगत

आदरणीय अतुल भाई एवं ईस्वामीजी
मेरी पोस्ट को एक बार फ़िर से पढ़िये और बताईय़े कि मैने कहाँ आप लोगों पर व्यक्तिगत कुछ लिखा है या कहाँ आप लोगों को देशद्रोही साबित करने की कोशिश की है? मैने उस सारे समूह के लिये लिखा है जो अक्सर अमरीका या किसी विदेश से तुलना करते समय इतने तल्ख हो जाते है कि कई बार उनका स्वर भारत के प्रति उपहास पूर्ण हो जाता है, विषय यह था कि अमरीकी समाज कैसा है न कि भारत में क्या बुराईयाँ है। ये ना भूलें कि भारत को आजाद हुए कितने वर्ष हुए है और इन सालों में भारत ने जितनी तरक्की करी है शायद किसी देश ने नहीं की होगी, अब रही बात भ्रष्टाचार या अपराध की तो मैं यह कहूँगा कि कूड़ा करकट हर गाँव में होता है। अब भारत जैसा भी है अपना ही है।
जिस तरह आप सबने अपनी राय रखी मैने भी रखी इसमें इतना बुरा मानने की कतई जरूरत नहीं थी, फ़िर भी आप की भावनायें आहत होती हो तो क्षमा याचना।
संजय भाई
सलाह के लिये धन्यवाद, किसी की भावनाओं का इतना भी मजाक ना उड़ायें कि उसे यह लगने लगे कि चिठ्ठा लिखना ही व्यर्थ है, देश के प्रति मेरा जो प्रेम है उसके लिये ध्वज लगाने का दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं होती, दिखावा वे करते होंगे जिनके पास कुछ होता नहीं।
मुझे अक्सर कहा जाता है कि भावनाओं मैं ना बहुँ पर भावनाओं में मैं नही बहा आप सब बहे हैं।
एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति आप लोगों की तरह बातों को अच्छे शब्दों में नहीं ढ़ाल सकता, और शायद इसिलिये में अपने आप को चिठ्ठा लिखने के योग्य नहीं समझता और इस अपने अन्तिम चिठ्ठे के साथ आप सब से विदा लेता हुँ, आज के बाद आपको कहीं भी मेरे बेहुदा चिठ्ठे और बचकानी टिप्पणियाँ (परिचर्चा पर भी) पढ़ने को नहीं मिलेंगी।
मेरे शब्दों से आप लोगों को जो तकलीफ़ हुई उन सबसे मैं एक बार और क्षमा याचना करता हुँ । और आप लोगों ने अब तक जो प्रेम दिया उसके लिये धन्यवाद देता हुं।

गुरुवार, जून 29, 2006

अमरीका अमरीका

चाहे हजार तकलीफ़ें हो, अमरीका से हजार गुने अपराध होते हों पर फ़िर भी भारत सबसे महान है। पैसों की चमक दमक भले ही अमरीका सी ना हो पर यहाँ जो प्रेम है वह कहीं नहीं है।
हम में से शायद बहुत कम लोगों ने एक दूसरे को आमने सामने से देखा होगा पर यह प्रेम नहीं है तो क्या है कि सागर चन्द जब जीतू भाई से नहीं मिल पाता तो उसे इस तरह का दुख होता है मानों अपने सगे बड़े भाई से नहीं मिल पाया हो, और जीतू भाई अगले दिन फ़ोन कर ना मिल पाने के लिये अफ़सोस प्रकट करते हैं।
यह प्रेम नहीं तो क्या है कि सागर की एक फ़रमाईश पर आदरणीय अनूप जी( फ़ुरसतिया जी) 10 पेज की फ़िराक गोरखपुरी की कविता टाईप कर पढ़वा देते हैं। दूसरे ही दिन फ़िर गुलजार साहब की रचना पढ़वाते है।
यह भारत के ही लोग है जो अपने देश की आलोचना सुन कर भी खामोशी से पढ़ रहे हैं वरना यह जापान या कोई ओर देश होता तो अपने देश के बारे में बुरा कहने वालों के साथ क्या सूलूक करता यह आप सब बेहतर जानते होंगे।
भाई लोग तुलना करना बन्द करो, होगा अमरीका श्रेष्ठ; भारत किसी से, कहीं भी कम नहीं है।

ये हमारे पथ प्रदर्शक ?


धर्म प्रचारकों पर मास्साब के विचार जान कर प्रसन्नता हुई, मैं भी कुछ कहना चाहता हुँ, सबसे पहले यह कहना चाहूंगा कि मुझे यह लिखने से इन का भक्त ना समझा जाये क्यों कि मैं पहले ही इन दोनो साधुओं के बारे में यहाँ लिख चुका हुँ।
सबसे पहले आईना जी ने लिखा "ओशो राम देव से लेकर श्री श्री रविशंकर सब की नजर अमीरों पर ही होती है। और सुनील जी ने लिखा श्री श्री रविशंकर का नाम बहुत सुना था, उनका बीबीसी की एशियन सर्विस पर लम्बा साक्षात्कार सुना, तो थोड़ी निराशा हुई उनके उत्तर सुन कर. उनका कहना कि उन्होने सुदर्शन क्रिया का पैटेंट इसलिए बनाया ताकि सारा पैसा उनकी फाऊँडेशन का अपना बने तथा उसका अन्य लोग पैसा न कमा सकें, सुन कर लगा मानो किसी व्यापारी की बात हो, न कि कि महात्मा या गुरु की!
इस बारे में कहना चाहता हुँ कि श्री श्री रविशंकर अगर सुदर्शन क्रिया या उनके अन्य कार्यक्रम सिखाने का अगर पैसा लेते है तो इसमे कुछ बुरा नहीं करते, क्यों कि यह पैसा श्री श्री की जेब में नहीं जाता, उन पैसों से कई समाज उपयोगी कार्य होते है, इस बारें में अधिक जानकारी के लिये त्सुनामी और भूकंप के बाद के समाचार पत्रों को एक बार फ़िर से पढ़ लें, और सुदर्शन क्रिया जिन लोगों ने नहीं की वे इस बारें कुछ नहीं कह सकते, अपने अनुभव नहीं बता सकते।मैने की है मै मानता हुं कि इस क्रिया के लिये 500/- की बजाय 5000/- भी अगर मांगे तो दिये जाने में कोई हर्ज नहीं है। और वैसे भी मुफ़्त की चीज हमें हज़म जरा मुश्किल से होती है, हम शुल्क देते है तो उस के प्रति गंभीर होते हैं, और कुछ अवचेतन मन से ही पर अपना पूरा पैसा वसूल करते हैं। यही क्रियाएं अगर मुफ़्त में मिलने लगेंगी तो कोई भी इसके प्रति गंभीर नहीं होगा।
और रही बात अमीरों पर नजर होने की तो मैं कहना चाहता हुँ कि स्वामी रामदेव इस बात को स्वीकारते हुए कहते हैं हैं कि उन के शिविरों का सारा पैसा इन अमीरों की जेब से आता है, मैने कहीं पढा़ था कि जो लोग अच्छे लेखक नहीं सकते वे अच्छे आलोचक बन जाते हैं जैसा ही कुछ यह है ।
कुछ इसी तरह कि हमें ब्लॉगर पर मुफ़्त लिखने को मिलता है तो कुछ भी अंट शंट लिख देते हैं, यही हमें इस के पैसे देने पडे़ तो हम भी रह अच्छा लिखना शुरु कर देंगे और अपनी कीमत वसूल करने की कोशिश करेंगे।
यही बात स्वामी रामदेव पर लागू होती है। उन्होनें कभी धर्म का प्रचार नहीं किया, कभी शिष्य नहीं बनाये, वे अगर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शीतल पेयों को पीने के खिलाफ़ बात करते हैं तो क्या गलत करते हैं। भारत सरकार के स्वास्थय मंत्री डॉ अम्बुमणि रामदास खुद स्वीकार कर चुके है कि इन पेयों में कीटनाशक होते हैं और श्रीमती सुनीता नारायण की वैज्ञानिक टीम तो साबित भी कर चुकी है।
सुरत शिविर में मैने अपनी पत्नी के साथ भाग लिया और पाया है कि स्वामी रामदेव के बताये प्राणायामों से शरीर पर लाभ होता है, यह मैं खाली पढी़ सुनी बातों पर विश्वास कर नहीं लिख रहा,
ना ही यह कोई सम्मोहित हुं, स्वयं अनुभव कर लिख रह हुँ, मेरी पत्नी का वजन तो 5 kg कम हुआ ही साथ में और भी कई शारीरिक लाभ हुए।
रवि कामदार जी को पता नहीं एक दो फ़ुट की दाढी़ वाले संत में स्त्री कहाँ नज़र आयी ये समझ में नहीं आता, अहमदाबाद तो में देख चुका हुँ , वहाँ तो महिलाओं के दाढी़ नहीं होती फ़िर पता नहीं वे कहाँ देख आये। पंकज भाई होती है क्या ? और करण जौहर कब दाढी रखते थे ये रवि जी को ज्यादा पता होगा।क्या उन की आवाज पतली है इस वजह से आप एसा कह रहे हईं तो मत भूलिये कोई हमारा प्रिय पात्र भी किसी शारीरिक कमी या अपाहिजता का शिकार हो सकता है तब क्या हम उनके लिये भी यही शब्द प्रयोग करेंगे?
रवि जी माना कि वे अमीरों के गुरू हैं, पर मैं मासिक मात्र 4000/- कमाता हुँ पर उन के ध्यान और क्रियाओं को पसन्द करता हुँ। और किसने कहा कि श्री श्री गाँवों में नहीं जाते? त्सुनामी से हुए नुकसान के बाद उन्होनें कई बार गाँवों का दौरा किया है।
टिप्पणी करना बहुत आसान है कुछ लोगों को बुद्धिजीवी होने का भ्रम हो गया है श्री श्री के लिये कहते हैं खेर इनको हम प्रसिध्धि के भूखे इस लिये कह सकते है क्योकि यह भी अपने आगे श्री श्री लगवाते है!! और अपने भक्तों को श्री श्री कहने से रोकते भी नहीं वे ही अपने आप को तत्वज्ञानी की ही उपाधी दे रहे है, पता नहीं ये कैसा तत्व ज्ञान है। हमने तो एसा तत्व ज्ञान कहीं नहीं देखा किसी ने देखा हो तो बताओ भाई लोग।
मैं आसाराम जी बापू, नीरू माँ, पान्डूरंग शाष्त्री या कोई अन्य धार्मिक प्रचारक की बात नही करता क्यों कि दोष उनका नहीं कुछ हमारा भी है जो हम इन लोगों को सर माथे चढ़ाते हैं और बाद में जब छले जाते हैं तो रोना रोते हैं।

यह सब लिखने से मुझे इन का भक्त नहीं समझा जाये क्यों कि मैं पहले ही कह चुका हुँ कि मैं इन का भक्त नहीं हुँ, और इस के अगले अंक में इन लोगों की खिंचाई भी होगी। ये लोग चाहे जैसे हो हमसे से तो श्रेष्ठ है



शनिवार, जून 17, 2006

अमूल विज्ञापन

आखिर मास्साब ने विज्ञापनों का चस्का लगा ही दिया।
विज्ञापन बनाने में अमूल का जवाब नहीं! किसी भी विषय (Current affair) पर विज्ञापन बनाने में माहिर अमूल के विज्ञापनों में ने हास्य का पुट अधिक होता है ही साथ में सामाजिक चेतना भी होती है ; कुछ विज्ञापन देखिये

फ़िल्म: फ़ना

नर्मदा और आमिर

दा विन्ची कोड

आरक्षण

फ़ैशन वीक

च...च...च बेचारा सौरव

मंगल पान्डे

इस श्रेणी में और भी कई विज्ञापन है जो अगले अंकों में प्रकाशित होंगे

सौजन्य: अमूल

बुधवार, जून 14, 2006

कुछ निन्दनीय पंक्तियाँ माँ के लिए


माँ की शान में हजारों शब्द लिखे जा चुके हैं, हिन्दी चिठ्ठा जगत में भी अक्सर माँ पर कुछ ना कुछ लिखा जाता रहा है, अब कल ही अपने श्री अनूप शुक्ला जी ने अपने चिठ्ठे "फ़ुरसतिया" पर स्व. फ़िराक गोरखपुरी जी की कविता माँ प्रकाशित की, परन्तु क्या माँ की निन्दा की जा सकती है?
खासी भाषा के कवि किन फाम सिं नौगकिनरिह की एक कविता कुछ निन्दनीय पंक्तियाँ माँ के लिए की कड़ी यहाँ दे रहा हुँ मर्यादा की दृष्टि से कविता यहाँ प्रकाशित नही कर पा रहा हुँ और उसका लिंक दे रहा हुँ कविता के कुछ शब्द आघात जनक है, परन्तु कवि बहुत सहजता से अपने शब्दों को कह जाते हैं

रविवार, जून 11, 2006

हैदराबाद ब्लॉगर मीट : जो हो ना सकी


कुछ दिनों पहले जीतू भाई से गूगल टाक पर बात हुई तब उन्होने बताया कि वे दिनांक १०-०६-२००६ को नागपुर से बंगलोर जायेंगे हैदराबाद उस रास्ते में ही आता है और गाड़ी लगभग १५ मिनीट सिकन्दराबाद स्टेशन पर रुकेगी।
मैं यह जान कर बड़ा प्रसन्न हुआ कि चलो जीतू भाई से मिलना होगा, यह बात श्री नितिन बागला जी को भी बताई तो वे भी बड़े खुश हुए। जीतू भाई ने मुझसे पूछा कि मैं आपको अपना कोच नं कैसे दुंगा, क्यों कि उनका टिकिट कन्फ़र्म नही हुआ था और वेटिंग लिस्ट भी कोई खास नहीं थी ५/६ वेटिंग थी सो कन्फ़र्म होना लगभग तय था, तब मैने उनसे उनके टिकिट का पी.एन.आर. नं. ले लिया और उस दिन से दिन में तीन बार चेक कर रहा था कि टिकिट कन्फ़र्म हो और कब कोच नं. पता कर जीतू भाई से मिला जाये !!!
पर हम जो सब सोचते है वो कब होता है दिनांक ७--६-०६ को नितिन जी से बात हुई तो उन्होने बताया कि उनके नानाजी का देहांत हो गया है सो वे ९ को राजस्थान अपने गाँव जाने वाले हैं और जीतू भाई से मिलने नहीं आ पायेंगे। खैर.... दिनांक १०.०६ को सुबह जब भारतीय रेल्वे की साईट पर पी एन आर नं डाला तो वहाँ लिखा था Can/mod यानि कि केन्सल या मोडिफ़ाईड। अब क्या किया जाय़ यह भी पता नहीं पड़ रहा था कि जीतू भाई आने वाले हैं या नहीं। पंकज भाई उर्फ़ मास्साब से पूछा कि उनके पास क्या उनका टेलिफ़ोन नं. है तो पता चला कि नहीं। अब कोई रास्ता नहीं था सम्पर्क करने का तो मैने सोचा कि रेल्वे स्टेशन ही चलते हैं। १५ मिनिट में तो आराम से ढुँढ लिया जा सकता है।
तो साहब में ६.४५ पर रेल्वे स्टेशन पर पहुँचा तो पता चला कि गाडी़ अपने सही समय यानि ७.०० बजे आयेगी, आखिर गाडी़ अपने सही समय यानि ७.२० पर स्टेशन पर आई!!!!
भारतीय़ रेल्वे जिन्दाबाद!! लालू यादव जिन्दाबाद!!!
अगर ट्रेन २०मिनीट भी लेट हो तो भी उसे सही समय कहा जाता है, ट्रेन भी कौनसी राजधानी एक्सप्रेस जो भारत की सबसे तेज गाड़ियों में गिनी जाती है।
खैर साहब ट्रेन पूरी छान मारी तीन चक्कर आगे से पीछे लगा लिये, तभी एक सज्जन कुछ सिन्धी महिलाओं से सिन्धी में बातें करते दिखे, शकल सूरत से बिल्कुल अपने जीतू भाई!!
मैं खुश होकर उनकी और लपका और उनसे पूछा
"आपका नाम जीतू भाई है?
उन्होने कहा "हाँ, पर आप कौन?
मैने कहा मैं सागर चन्द नाहर।
उन्होने कहा मैने आपको पहचाना नहीं!!
मैं एकदम चौंक गया जीतू भाई मुझे शक्ल से नहीं पर नाम से भी नही पहचाने ये तो हो नहीं सकता! मैने पूछा
आप कुवैत से आयें हैं?
उन्होने कहा "नही"
तब मुझे लगा कि यह तो अच्छी मजाक हो गयी जिन्हें मैं जीतू भाई समझ बैठा था सयोंग से उनका नाम भी जितेन्द्र था और थे भी सिन्धी।
आखिर आप के सागर चन्द उदास थके और कदमों से वापस घर आ गये ।
पुनश्चय: यह प्रविष्टी टाईप कर पोस्ट करते समय मेरे जिजाजी (जिनका सुपर स्टोर मेरे घर के सामने है और मैने फ़ोन नं उन्ही का दिया था) ने एक संदेश दिया कि जब मै खाना खाने रेस्टोरेंट गया था ( पत्नी और बच्चे छुट्टियाँ मनाने गये हैं) तब कुवैत वाले जीतू भाई का फ़ोन आया था कि वे हैदराबाद नहीं आ पा रहे है और नागपुर से सीधे ही बेंगलोर जायेंगे।
जीतू भाई अगर पढ रहे हों तो उनसे अनुरोध है कि खेद व्यक्त ना करें क्यों कि इसमें आपका कोई दोष नही है।
संभव हो सके तो वापसी के समय इधर जरूर आयें।