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सोमवार, मई 15, 2006

चिठ्ठाकार मित्रों को धन्यवाद

विश्वास नहीं होता ये मैने किया है, परन्तु आप सभी चिठ्ठाकार भाई बहनों के बिना यह कहाँ संभव था कि एक अल्प शिक्षित हिन्दुस्तानी जिसे अंग्रेज़ी भी ढ़ंग से पढ़ना नही आती, जिसे कई बार हिन्दी में भी दिक्कतें आती हो, सोफ़्टवेर के मामले में भी शून्य बटा शून्य हो उसके चिठ्ठे पर मित्रों ने मात्र 2 महीने में एक हजार से ज्यादा बार मुलाकात ली, टिप्पणी और सुझाव दिये।
आज मेरे चिठ्ठे का मीटर 983 का अंक बता रहा है, जब मार्च में (12 मार्च)मैने लिखना शुरू किया तब थीम और डिजाईन वगैरह बदलने के समय एक दो बार मीटर शुन्य हो गया था, पहले पहले कई परेशानियाँ हुई बाद में जीतू भाई साहब (मेरा पन्ना), पंकज जी (मंतव्य) आदि मित्रों और वरिष्ठ चिठ्ठाकारों का सहयोग मिलता गया और राह थोड़ी आसान होती गयी.
कई बार मुझे इस बात का दुख होता है कि में अन्तर्जाल के व्यव्साय में होते हुए भी एक वर्ष तक हिन्दी चिठ्ठा जगत से अपरिचित रहा क्यों कि पिछले वर्ष फ़रवरी 2005 में मैने साईबर कॉफ़े चालु किया और फ़रवरी 2006 में पहली बार हिन्दी चिठ्ठा पढ़ा। खैर देर आये दुरस्त आये।
एक बार फ़िर में आप सभी को धन्यवाद अदा करता हुँ और आशा करता हुँ कि भविष्य में आप का इसी तरह सहयोग मिलता रहेगा।

14 टिप्‍पणियां:

Kaul ने कहा…

सागर जी, आप का पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। निश्चित रूप से अंग्रेज़ी के बिना भी उत्कृष्टता संभव है, और डिग्रियों के बिना भी। मेरी कामना है कि आप इसी तरह बढ़िया लिखते रहें, और आप के पाठकों की संख्या भी बढ़ती रहे। भारत से मिले संकेतों से मुझे यह लगता था कि साइबर-कैफे जैसी जगहों पर कंप्यूटर पर हिन्दी पढ़ना मुश्किल है -- कहीं font की कमी होती है, तो कहीं सही operating system की, पर जहाँ आप जैसे हिन्दी प्रेमी लोग इस व्यवसाय में हों, वहाँ यह स्थिति बदलते देर नहीं लगेगी।

ई-छाया ने कहा…

अच्छा लगा सागर भाई। आशा है कि आप इसी तरह लिखते रहें और हम पढते रहें।

Yugal ने कहा…

बहूत बडिया सागर साहब

बेनामी ने कहा…

मैं आपका 1009 वाँ मुलाकाती था. आपको बधाई. और कुछ नहीं इससे लिखने का उत्साह बना रहता हैं, तो लिखते रहीए. शिध्र ही यह अंक दस हजार को छुएगा.

Jitendra Chaudhary ने कहा…

सागरजी, एक हजार क्या, दस हजार, लाख, करोड़ की संख्या भी पार करेगा ये आंकड़ा, इत्ती पोस्ट हो जाएंगी कि ब्लॉगर भी बोल जाएगा।बस लोगों को हिन्दी ब्लागिंग की लत लगने तो दीजिए।फिर देखिएगा।

रचनात्मक अभिव्यक्ति किसी की मोहताज नही होती,इन्टरनैट तकनीक के आने से तो यह बाँए हाथ का खेल हो गया है।हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि जो जानकारी/ज्ञान हमे दूसरे हिन्दी चिट्ठाकारों से मिला उसका प्रकाश हम दूर दूर तक फ़ैलाए, शायद हिन्दी चिट्ठाकारी के यही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

प्रेमलता पांडे ने कहा…

सागर जी बधाई और शुभकामनाएं।
प्रेमलता पांडे

Pratyaksha ने कहा…

ऐसे ही लिखते रहिये. हमारी शुभ कामनायें

रत्ना ने कहा…

बधाई ।

अनुनाद सिंह ने कहा…

सागर भाई,
आपके चिट्ठे की दिन दूनी रात चौगूनी प्रगति हो |

हिन्दी चिट्ठाकारी में साइबर केफे काफी मददगार साबित हो सकते हैं | लोगों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन करना पडेगा और ये बताना पडेगा कि कम्प्यूटर पर हिन्दी में भी लिखा-पढा जा सकता है और यह आसान भी है | साइबर कैफे वाले अपनी दुकानों के प्रवेशद्वार पर और दुकानो के अन्दर कुछ इस तरह की सूचनाएँ प्रदर्शित कर सकते हैं :

"आप यहाँ हिन्दी में भी मेल लिखकर भेज सकते हैं "

"कम्प्यूटर पर हिन्दी में लिखें-पढें | कोई समस्या आये तो हमसे सहायता लीजिये |"

आदि

बेनामी ने कहा…

मैं अनुनाद भाई के विचारों का अनुमोदन करता हुं.
लोगो को बताया जाना चाहिए कि हमारी भाषाओं में भी काम हो सकता हैं.
जानकारी का अभाव देखीये, हाल ही में किसी ने मुझसे पुछा आपका कि-बोर्ड अंग्रेजी में हैं फिर आप हिन्दी कैसे लिख (टाइप कर)पा रहे हैं.

Sagar Chand Nahar ने कहा…

उत्साह वर्धन एवं इतना प्रेम देने के लिये धन्यवाद, अनुनाद सिंह जी, रमण कौल जी, जीतू भाई जी, एवं संजय बेंगानी जी के सुझावों पर शीघ्र ही अमल करुंगा।

Udan Tashtari ने कहा…

सागर भाई
बहुत बढियां लिखते हैं आप. आत्मा की आवाज़ किसी भाषा की मोहताज़ नही होती. आप कहें, समझने वाले हाज़िर हैं, और आगे से किसी बात पर इस तरह के अहसासों की आवश्यकता नही है, मै बहुत जानकारों को जानता हूँ, जो अति शिक्षित है एवं भाषा ज्ञानी मगर अपनी बात नही रख पाते है.

आपकी सफ़लता पर साधुवाद देता हूँ...

समीर लाल

Basera ने कहा…

सागर जी, इतने कम समय में इतनी कामयाबी पाने के लिए बधाई। सच में, आप साईबर कैफ़े चलाते हैं तो हिन्दी को प्रचलित करने में आप काफ़ी सहायता कर सकते हैं।

बेनामी ने कहा…

महान इन्सान हो आप यार आपकी सफ़लता दिन दुनी रात चौगुनी बढ़े........