कभी कभी जिन्दगी में ऎसे मौके आते है जब हम उन मौकों का लाभ नहीं उठा पाते फ़िर जिन्दगी भर पछताते रहते हैं. ऎसा ही एक बार मेरे साथ हुआ था, बात उन दिनों की है जब मैं सुरत में रह रहा था. एक दिन जब तापी (ताप्ती ) नदी पर बने सरदार पुल का उदघाटन करने के लिये माननीय अटल जी वहाँ आये थे,अटल जी मेरे आदर्श हुआ करते थे,( आज भी हैं, मैं सोचता हुँ कि उन्होने सबसे बड़ी गल्ती प्रधान मंत्री पद लेकर की ) उदघाटन और उनके भाषण के पुरे होने के बाद में उनके ओटोग्राफ़ लेने के लिये भीड़ को चीर कर उनके पास पहुँचा और अटल जी को ओटोग्राफ़ पुस्तिका दी तो उन्होने मेरी जेब से पेन निकाल कर पुस्तिका में हस्ताक्षर दे दिये,(ध्यान दें पेन २/- मूल्य का स्टिक वाला था). उन्होने मुझे पुस्तिका वापस दी और पेन अपनी जेब में रख दिया में भूल गया कि में किसके सामने खड़ा हुँ, में वहीं कुछ सोचते हुए खड़ा रह गया तब अटल जी ने मुझसे पुछा क्या हुआ? और मेरे मुँह से पता नही कैसे निकल गया "सर मेरा पेन आपके पास रह गया", तो अटल जी ने हँसते हुए अपनी जेब से पेन निकाल कर मेरी जेब मे रख दिया और मेरी पीठ थपथपाई.
आज जब भी वह बात याद आती है तो बड़ा अफ़सोस होता है कि मेंने उनसे एक २/- का पेन भी फ़िर से माँग लिया.अगर आप लोगों के साथ भी एसा ही कुछ वाकया हुआ हो तो बतायें
5 टिप्पणियां:
वाह, क्या वाकया है. मैं अटलजी के कभी इतने करीब नही जा पाया. जब आपने ऑटोग्राफ लिया तब वो प्रधानमंत्री पद पर नही होंगे. नही तो आप जा नही पाते.
जी हाँ जब यह वाकया हुआ तब वे प्रधान मंत्री नहीं थे.
अपनी वस्तु चाहे २ रू की हो या २ हजार की, अगर किसी को इस्तेमाल करने को दी है तो वापस माँगने में क्या हर्ज है? फ़िर भले ही सामने वाला कोई "सेलेब्रिटी" ही क्यों ना हो.
मैं तो कहता हूँ कि अगर पेन उनके ही पास रहने दिया होता तो शायद वो आपको उतना भी याद नहीं रखते जितना कि यह सोचकर "याद" रखा होगा कि -"वाह! कैसा बंदा था, अपने २ रू भी नही छोडे".
"बदनाम हुये तो क्या हुआ, नाम न होगा?"
रोचक घट्ना
भाग्यशाली हैं आप्
मेरे बडे भाई जी भी अटल जी के गोद मे खेले है जब वह 1 साल के थे बात 1980 कानपुर की है और वह भारतीय मजदूर सङः नवीन मार्केट मे आये थे तब मेरा जन्म भी नही हुआ था
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