हमारे बचपन में लोगो में लोगों में भगवान के नाम से छपे पर्चें बाँटने का एक क्रेज़ हुआ करता था, राम, कृष्ण, तिरुपती बालाजी ओर ना जाने कौन कौन से भगवान, वैसे साँई बाबा ओर हनुमान जी तो उन के मुख्य नायक हुआ करते थे. पर्चों में लिखा होता था,... एक दिन एक मन्दिर में पुजारी पूजा कर रहा था, अचानक वहाँ एक साँप निकला ओर उसने पुजारी से कहा ( हाँ भाइ वह साँप मनुष्य के स्वर में बोला था) मै फ़िर से अवतार लेने वाला हुँ आदि आदि... फ़लाँ ने ५०० पर्चे छपवा कर बाँटे तो उसे पचास हजार की लाटरी लगी, फ़लाँ ने पर्चे को फ़ाड दिया तो कुछ ही दिनों में उसका इकलौता बेटा मर गया, अमुक ने पर्चा छपवाने में देरी की तो उसे व्यवसाय में घाटा हुआ, आप भी इसी तरह 200 या 500 पर्चे छपवा कर वितरित करे तो आने वाले १४ दिनों में आपको आर्थिक लाभ होगा (कुछ तो गारंटी भी देते थे), अन्यथा आपको भी फ़लाँ की तरह नुकसान हो सकता है, हम आसानी से समझ सकते हैं कि वह प्रिन्टिंग प्रेस वालों की चालें हुआ करती थी. ज़माना बदला, जेरॉक्स मशीनें आयी उन लोगों ने भी इस काम को खुब बढ़ाया, फ़िर मोबाइल फ़ोन का नंबर आया ओर आजकल अन्तर्जाल पर यह काम चल रहा है, ज्यों ही याहू मैसेन्जर लोगिन करो ओफ़लाइन मैसेज तैयार, इस एस एम एस को १० लोगो को फ़ोरवर्ड करो ओर ५ दिन में फ़ायदा पाओ, मेल चेक करो तो वहाँ भी दो चार भगवान तैयार....किस हद तक अज्ञानता? कहाँ ले जायेगा यह अन्धविश्वास. हद तो तब होती है जब मेरे साईबर कॉफ़े मे लोग मुझसे कहते मुझे यह नहीं वह कम्प्युटर दो वह मेरे लिये लकी है, हसीँ भी आती है और पढे लिखे लोगों ( कुछ तो एम.सी.ए डिग्री वाले भी हैं ) पर गुस्सा भी आता है, कुछ कह नही सकते. हुआ युं कि किसी ने परीक्षा का परिणाम किसी कम्प्युटर पर देखा तो वह पास हुआ ओर अगले सेमेस्टर का परिणाम दुसरे कम्प्युटर पर देखा ओर भाई साब अनुत्तीर्ण हो गये तो सारा दोष बिचारे कम्प्युटर का कि वह अनलकी है.
मैने आज तक कई पर्चों को फ़ाड़ा है, किसी एस एम एस का या ओफ़लाईन मैसेज का उत्तर नही दिया,बिल्ली के रास्ता काटने पर भी कई बार घर से बाहर निकला हुँ पर आज तक मेरा कुछ नही हुआ. क्या राय है आपकी मैं सही कर रहा हुं या गलत ?
मंगलवार, अप्रैल 04, 2006
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6 टिप्पणियां:
उत्तम विचार
मैं भी यह नहीं मानता।
अमां ये पर्चे छापकर भिजवाने पर याद आया, कि एक बार ऐसा ही एक पर्चा हमारे घरवालों के हाथ भी लगा था, जिम्मेदार हमे दी गयी,पैसे भी दिए गये,लेकिन हमारा दिल नही माना, हमने उन पैसों से दोस्तों को दावत दे डाली, और घर पर बोल दिया कि पर्चे छपवा दिए।घरवाले भी खुश और दोस्त भी।
रही बात बिल्लियों के रास्ता काटने की, तो भैया जिस तरह हिन्दुस्तान मे कुत्ते घूमते है सड़क पर ठीक उसी तरह से यहाँ गलियों मे बिल्लियां घूमती है, कार के आगे रस्ता जरुर काटती है, हम तो आज तक वहम नही हुआ।
भाई जी
यहाँ तो Key-Board की Delete key ही इसी तरह की मेल Delete करते करते खराब हो गई..जरा बताईये, उसी का शाप तो नही कि नया Key-Board खरीदना पडा..:)
क्यों करते लोग ऎसा...यही बात आतंकवादियों के लिये भी सोचता हूँ कि क्या मिलता है उन्हें..खैर सोच को विराम...बहुत अच्छा मुद्दा है.
समीर लाल
बहुत सी बेवकूफियों पर समय नही बर्बाद किया जाता, यह उन्मे से यह एक है|
लेकिन जब आप ने यह बात कि तो Martin Gardner की 'Science Good, Bad and Bogus' भी पढ कर देखिये| यह बहुत अच्छी किताब है| आपके द्वारा व्यक्त की गयी भावनाओं को बहुत अच्छी तरहसे कहती है|
are dada billi ke rasta katne se agar kuch bura ho jaye aisa ho he nahin sakta
सभी धर्मों में अन्धविश्वास पाए जाते हैं पर हमारे हिंदू धर्म के मानने वाले कुछ ज्यादा ही अंधविश्वासी होते हैं.
ढोंगी और पाखंडी बाबाओं की दुकान भी इन लोगों के कारण ही चलती है.हमारे पडोसी एक दादाजी जो पक्के जैनी हैं कभी किसी बाबा, अनजान देवता-कुलदेवता में विश्वास नहीं रखते थे पर घुटनों के दर्द से परेशान थे,तभी पास के गांव में एक ढोंगी बाबा ने एक हनुमान मंदिर पर मजमा लगाया और हर बीमारी के इलाज का दावा किया, लाखों की भीड़ उमडती हर मंगलवार को. मंत्री भी पहुँचने लगे म.प्र. शासन के. ६ माह तक बाबा की धूम मची. हमारे पडोसी भी महीने के चारों मंगलवार पहुंचे और दवाई ली. कुछ फायदा तो नहीं हुआ ऊपर से बीमार भी पड़े.
एक दिन खबर आई कि बाबा रातों-रात रफू चक्कर. पता चला उसने ६ महीने में १०-१२ लाख का दान इकट्ठा कर लिया था.
संभलो भारतवासियों. मिर्ची-नीम्बू टाँगने से अपशगुन और बाबाओं की भस्म से रोग नहीं मिटते..
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