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शुक्रवार, अप्रैल 14, 2006

आरक्षण पर एक अनुभवी चिठ्ठाकार के विचार

आरक्षण पर आज एक अनुभवी चिठ्ठाकार के विचार पढ़ कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई.यानि आप भी आरक्षण को सही मानते हैं, आरक्षण होना ही चाहिये चाहे वो योग्य उम्मीदवारों की बलि लेकर ही क्यों न हो, चाहे अयोग्य पर अनुसुचित जाति- जनजाती के उम्मीदवारों में अनुभव हीनता ही क्यों ना हो, एसी ही सोच की वजह से इस देश के योग्य छात्र विदेश पलायन कर रहे हें, ना.......... पर हमे इस बात से क्या? हमें तो उनको सर माथे पर बिठाना है जिन्हे काम करना ढंग से आता भी हो या नहीं,
आप लिखते हैं उन्होने हर संभव कोशिश की कि अर्जुन सिन्ह को खलनायक साबित किया जाय, यानि आप के लिये वे आदर्श हें जिन्होने देश में सवर्ण और असवर्ण के बीच में भेद भाव करवाया. एक जगह आप ने चुनाव आयुक्तों के लिये लिखा कि "चुनाव आयोग के ईमानदार आयुक्तों " मानों चुनाव आयोग के सारे आयुक्त सीधे स्वर्ग से उतर कर आये हैं, वे ईमानदार के सिवा कुछ हो ही नही सकते.
आपने लिखा समाचार चैनलों और अख़बारों द्वारा ‘योग्यता’ के पक्ष में मुखर स्वरों की खोज करने के लिए जिस तरह से कैमरामैन और पत्रकारों की टीम चुनिंदा जगहों पर भेजी गई और उन्हें एकपक्षीय और पक्षपाती ढंग से प्रस्तुत किया गया, उससे भी अधिक शर्मनाक था इस विषय पर परिचर्चाओं का संचालन। इस तरह की सभी परिचर्चाओं का संचालन निरपवाद रूप से सवर्ण पत्रकारों द्वारा किया गया। यानि उन्होनें अगर आरक्षण के विरोध की बजाय समर्थन के बारे में कहा होता तो सही होता, तब यह पक्षपात थोड़े ही होता क्यों कि तब तो बात पिछड़े लोगो की हो रही होती और पिछड़े तो आप की नज़र मैं पैदाईशी देवदूत होते हैं उन्हे किसी भी हाल में आरक्षण मिलना ही चाहिये चाहे योग्य सवर्ण भीख ही क्यों ना मांगे.
आपने सारे पत्रकार जगत को गलत साबित करने की कोशिश की, अगर सवर्ण ( ये आप सोचते है कि वे सारे सवर्ण ही थे, ये भेदभाव पत्रकारों के मन में नहीं होता) पत्रकारों की बजाय वहाँ आरक्षण समर्थक पत्रकार वहाँ होते तो बड़े खुश होते आप क्यों कि अयोग्य उम्मीदवारों के समर्थन में बोलने वाला कोई तो होता
आपने लिखा इस देश में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के पक्षधरों की संख्या उसके विरोधियों की संख्या से कम से कम चौगुनी है। लेकिन इन स्वनामधन्य पत्रकारों को पूरे देश में आरक्षण के पक्ष में बोलने वाला प्रतिभाशाली व्यक्ति खोजने से भी नहीं मिला। उनकी नज़रों में पिछड़े वर्ग के सारे लोग ही प्रतिभाहीन थे।यानि आपके हिसाब से आरक्षण उन लोगों ही मिलना चाहिये जिसके समर्थक उसके विरोधियों से कम से कम दुगुने- चौगुने हो, योग्यता कोई मायने नही रखती आपके लिये.
इस देश की बुरी हालत का जिम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ आरक्षण है, भ्रष्टाचार का क्रमांक तो उससे कहीं पीछे है.
आदरणीय जीतु भाई के लेख में कई लोगों ने अर्जुन सिंह को जम कर कोसा परन्तु मेरे जीवन में धर्म का महत्व प्रतियोगिता में किसी माई के लाल ने छाती ठोक के यह कहने की हिम्मत की कि हां हमे हमारा धर्म प्यारा है, सबने अपने धर्म को ही कोसा, जब तक हम हिन्दु धर्म को गाली देने की आदत को नहीं बदलेंगे अर्जुन सिंह (अर्जुन काहे का इस बदमाश को शिखंडी कहना भी उस महान योद्धा का अपमान होगा) जैसे लोग अल्पसंख्यकों और मुस्लिम लोगो में दीवार खड़ी करते रहेंगे, वो दिन दूर नही जब योग्य छात्र भीख मांगेगे और आरक्षण की वजह से अयोग्य लोग सारी जगहों पर बैठे होंगे और बैठे हैं भी, हम अक्सर रैल्वे और दुसरी जगहों पर देखते हैं कि जिन लोगो को ढंग से कम्प्युटर चलाना नहीं आता वे लोग अपनी गलतियों पर बाबु बन कर लोगो को हड़काते रहते हैं.
यह लड़ाई आरक्षण की नही योग्यता और अयोग्यता की है, कम से कम हमें तो योग्यता का साथ देना चाहिये चाहे वो सवर्ण हो या असवर्ण; और यही आरक्षण का पैमाना होना चाहिये
अब भी कुछ देर नही हुई जागो......

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

अर्जुन सिन्ह ऐक हारा हुआ ईन्सान है सोनिया का पालतू है। पिछले दस सालो मे ऐक चुनाव नही जीत सका। जिन्दगी भर जमकर किया कुकाम और बुढापे मे हुआ जुकाम। चुरहट लाटरी हो या भोपाल गैस कान्ड या फिर हो सीधी मे चुनाव मे गडबड, ईनके पाप का ठीकरा कब फूटेगा भगवान