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रविवार, अप्रैल 16, 2006

क्रिकेट

हम राजनीती पर जब भी चर्चा करते हैं तो हमारा विषय यह होता है कि राजनीती में युवाओं को आगे आना चाहिये या युवाओं को मौका देना चाहिये पर जब भी क्रिकेट की बात आती है तो हम सचिन और सौरव का गुणगान करने लगते है चाहे वो अच्छा खेल पा रहे हो या नहीं.
इंगलैण्ड के साथ खेले गये मैच के साथ ही इस श्रंखला के सारे मैचों में (एक को छोड कर) भारत की विजय के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि भारत के पास अभी कई और प्रतिभावान खिलाड़ी हैं , अब हमे सौरव, सचिन और सहवाग की जगह महेन्द्र सिंह धोनी, इरफ़ान पठान,मुनाफ़ पटेल, श्री संत, रॉबिन उत्तपा जैसे और योग्य खिलाडीयों पर ध्यान और उन्हें मौका देना चाहिये.
हम जानते हैं कि क्रिकेट के लिये सचिन, सौरव और सहवाग बहुत कुछ किया है परन्तु अब हम उनके पुराने प्रदर्शन को हम ले कर बैठ नहीं सकते, इन खिलाड़ियों को टीम से बाहर निकाला जाय, उसकी बजाय खुद इनको ही क्रिकेट से सन्यास ले लेना चाहिये.
सौरव की इतनी नाकामी के बाद लोगों का एक बड़ा वर्ग सौरव को टीम में शामिल किये जाने का पक्षधर है,जो रणजी मैचों में भी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं. सचिन और सहवाग भी अब थक चुके हैं, अपने आप को इतने हँसी का पात्र बनाने की बजाय कपिल देव,सुनील गावस्कर और सिध्धु की भाँति अपनी कारगिर्दी के शीर्ष पर रहते हुए क्रिकेट से सन्यास ले लेते तो उनका बड़्प्पन होता, परन्तु सौरव ने इतनी सफ़लता के बाद अपनी हालत एक नवोदित खिलाड़ी जैसी कर ली है जो इस आस पर बैठा हे कि मुझे इस मैच में, नहीं तो अगले मैच में टीम में शामिल किया जायेगा. इतने अच्छे खिलाड़ी ने अपनी कैसी दयनीय हालत बना ली है,सचिन का हाल भी कुछ ऐसा ही है और सहवाग तो जिनसे टीम को बहुत उम्मीदें रहती है वह कितने समय से कुछ नही कर पा रहे है.

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