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रविवार, अप्रैल 02, 2006

मेरे जीवन में धर्म का महत्व



कई चिठ्ठाकारों के धर्म पर विचार पढ़ कर धर्म पर लिखने का मन हुआ है, दर असल धर्म की कोई परिभाषा हो ही नही सकती, क्यों कि हर परिस्थिती, जगह ओर समय के अनुसार धर्म की परिभाषायें बदलती रहती है.
में मानता हुँ कि धर्म की सही परिभाषा है "मानवता", और धर्म का मतलब हमारे देश ओर समाज की उन्नती से होना चाहिये. शायद आप इसे "अपने मुँह मियाँ मिठ्ठु बनना" कह सकते हैं परन्तु मैने आज तक इस धर्म को निभाया है, ओर हर इन्सान किसी ना किसी रूप में अपने धर्म का निर्वाह करता ही है .
मैं जन्म से जैन हुँ और मुझे जैन मेरा धर्म बहुत पसन्द है मेरी इच्छा है कि मैं हर जन्म में जैन के रूप में ही जन्म लूँ. अब मुझे मेरा धर्म इस वजह से ही पसन्द नही है कि इसमें भगवान महावीर हुए थे, मुझे मेरा धर्म इसके सिद्धान्तों की वजह से बहुत पसन्द है, आप ही सोचिये सत्य ओर अहिंसा में क्या बुराई है.
जैन एक एसा धर्म है जिसे अपनाने के लिये जैन घर में पैदा होना जरूरी नही होता, मात्र इसके सिद्धान्तों को अपनाने मात्र से जैन हुआ जा सकता है.मैं एक चुस्त जैन की भाँति जैन पूजा पाठ नही करता, सामायिक करने का सही तरीका मुझे नही आता, सुहैब के माताजी ओर पिताजी की ही तरह मेरे माताजी ओर पिताजी भी मुझे अक्सर सामायिक करने ओर साधु सन्तों के दर्शन करने को बाध्य करते है ओर मे उन्हे नाराज़ नही करता, पत्नि त्योहारों (खासकर होली ओर बुजुर्गो की पुण्य तिथियोँ ) पर मुझे उन्हे धूप देने ( मारवाडी समाज मे भगवान की पूजा का एक तरीका जिसमें जलते अंगारों पर घी ओर घर मे बनी मिठाईयाँ रख दी जाती है) को कहती है, मुझे सही तरीका नही आता और में यह भी, जानता हुँ कि यह सब आडम्बर है पर मे उन्हें खुश रखने की कोशिश करता हुँ, क्या यह धर्म नही है कि आप अपने माता -पिता, पत्नी ओर परिवार को अपने कार्यों से खुश रखो.
मैं एक आम भारतीय की भाँति अपने देश, अपने परिवार ओर अपने समाज से बहुत प्रेम करता हुँ जहाँ मेने मानवता का धर्म सीखा. मुझे एसे लोगो से चिढ़ है जिन्हें हर बात में नुक्स निकालने की आदत होती है ओर अपने बै-सिर पैर के तर्कों से कभी धर्म तो कभी समाज को बदनाम करते रहते है, शायद यह भी मेरा एक धर्म है.
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rel="tag">अनुगूँज

4 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

आपने सरल भाषामें और बिना प्रवचन दिये अपनी बात कह दी हैं.

Pratik Pandey ने कहा…

आपका धर्म-भाव और आस्था निश्चय ही प्रशंसनीय है। साथ ही आपने अपने विचारों का बहुत सरल तरीक़े से व्यक्त किया है, इसलिये आपका यह लेख पठनीय बन पड़ा है।

बेनामी ने कहा…

सागर, अपने विचारों का बहुत सरल तरीक़े से व्यक्त किया है आपने.

प्रेमलता पांडे ने कहा…

सागर जी विचार बहुत ही अच्छे हैं प्रेरणादायीं हैं ख़ासकर आज की पीढ़ी के लिए।