आतंकवाद पर परिचर्चा में अनुनाद जी की एक टिप्पणी थी
Israel kee neeti well-researched neeti hai. Bhaarat me usake alaawaa kuCh kaam nahee karegaa. Kisee galatphahamee me mat raho.
और संजय बेंगानी जी की एक टिप्पणी थी भारत इज्राइल क्यों नहीं बन सकता?
मैने इसराईल के बारे में जितना कुछ पढ़ा है मुझे पता चला है कि इसराईल को विदेशों में रह रहे यहूदी अपने देश के लिये बहुत पैसा भेजते हैं, और इसराईल में रह रहे यहूदियों का देश के लिये रक्षा फ़ंड मे वार्षिक १००० डॉलर हिस्सा होता है, यानि लगभग ४,८०,००,००,००० डॉलर(एकाद बिन्दी कम ज्यादा हो तो जोड़ लें) अब भारत का क्षेत्रफ़ल इसराईल से लगभग १५८ गुना ज्यादा है, और रक्षा बजट मात्र २.५ गुना क्या ऐसे में संभव है कि हम इसराईल की तरह आक्रामक हों जायें? क्या भारत की आर्थिक स्थिती इतनी समृद्ध है कि हम बार बार युद्ध कर सकें।
पैसा तो भारत को भारतीय एन आर आई भी बहुत भेजते है परन्तु वह देश के रक्षा कोष की बजाय़ मंदिरों, मदरसों और गिरजाघरों की दीवारें बनाने में ही खर्च हो जाता है। मुझे भी इसराईल के प्रति बहुत आकर्षण है, अन्याय के विरुद्ध लड़ने का उनका तरीका जबरदस्त है परन्तु जिस दिन सुनील जी का यह चिठ्ठा पढा़ मन सोचने को मजबूर हो गया। क्या सही है क्या गलत मन इसी उधेड़बुन में है।
सुनील जी ने अपने इस चिठ्ठे में बहुत अच्छा लिखा है कि "मैं मानता हूँ कि केवल बातचीत से, समझोते से ही समस्याएँ हल हो सकती हैं, युद्ध से, बमों से नहीं. अगर एक आँख के बदले दो आँखें लेने की नीति चलेगी तो एक दिन सारा संसार अँधा हो जायेगा"
5 टिप्पणियां:
सागर भैया,
अणुशक्ति के अविष्कारकर्ता आइंस्टीन और अन्य दिग्गजों ने ९ जुलाई १९५५ को लंदन से साझा बयान जारी किया जो इस प्रकार है –
हम इस सम्मेलन का और इसके ज़रिए दुनिया के वैज्ञानिकों और आम जनता का आह्वान करते हैं कि वह निम्नलिखित प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे. ''भविष्य में होने वाले किसी भी विश्व युद्ध में परमाणु हथियारों का लाज़िमी तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा. इस हक़ीक़ी आशंका को देखते हुए और इसकी वजह से मानव सभ्यता के अस्तित्व पर पैदा हो रहे ख़तरे के चलते हम दुनिया की सरकारों से आह्वान करते हैं कि वह इस बात को समझे और सार्वजनिक रूप से स्वीकार करे कि विश्व युद्ध से उनका कोई मक़सद हल नहीं हो सकता. हम उनसे आह्वान करते हैं कि वह तमाम आपसी झगड़ों का हल निकालने के लिए शांतिपूर्ण साधनों का इस्तेमाल करें.''
हस्ताक्षर- मैक्स वॉर्न, परसी डब्ल्यू ब्रिजमेन, एल्बर्ट आइंस्टीन, लियोपोल्ड इनफ़ेल्ड, फ़्रेड्रिक जोलियॉट क्यूरी, हरमन जे मूलर, लिनस पाउलिंग, सेसिल एफ़ पावेल, जोसेफ़ रॉटब्लॉट, बट्रेंड रसेल और हिडेकी यूकावा.
आप चाहें तो इसे पढ़ने के बाद अपना नाम भी दस्तख़त करने वालों में जोड़ सकते हैं. मेरा तो ऊपर आ ही गया है.
क्या इस वक्तव्य का यही निष्कर्ष है कि हिंसा का प्रयोग करके हमारा सर्वनाश करने और अन्तत: हमको गुलाम बनाने पर उतारू शत्रु के साथ शान्तिपूर्ण व्यवहार करो, नहीं तो परमाणु युद्ध हो सकता है?
क्या शान्ति की ताली केवल एक हाथ से बजे सकती है?
कभी नही । भारत मे़ अलग अलग dharm के लोग रहते है ।
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