शीर्षक सौजन्य: विजय वडनेरे
साथियों आप सब के असीम प्रेम और अनुरोध को ठुकरा पाने का साहस मुझमें नहीं इस लिये सन्यास लेना कैन्सिल (बकौल ईस्वामीजी) " वीरू प्राजी" वाली ईश्टाईल में मैं टंकी से नीचे से नीचे उतर रहा हुं।
यह तो मजाक हुआ, खैर इस सारे प्रकरण में मुझे कई लोगों ने अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने को कहा और हिम्मत दी उन सब को अन्त:करण से धन्यवाद देता हुँ। टिप्पणी के अलावा भी कई लोगो ने ईमेल के जरिये मुझे समझाया उन सबका भी हार्दिक धन्यवाद।
20 टिप्पणियां:
यह हुई न कोई बात ।
धन्यवाद सागर भाई, हम सबको आशा है कि हिन्दी चिठ्ठा-जगत को आपका सहयोग निरंतर मिलता रहेगा । टिप्पणियों और आक्षेपों (यदि हों तब भी) से बिना विचलित हुए।
बहुत अच्छे.....
:)
लौट के नाहर घर को आए.. :)
चिट्ठाजगत में रहना हैं तो हमारी थोड़ी खिंचाई तो सहनी होगी ही. हीं..हीं..
आप जा गये हो तो रौनक आ गई हैं, वरना..
वरना मुझ अकेले पर ही सारा भार था. ;)
नाहर भाई वादा करो वो मेरे राज जो मैं और मेरी सास ही जानते हैं और उस दिन आपको मनाने के लिए चेट कर करे थे तब उगल दिये थे, आप किसी के नहीं बताएंगे.
थेंक्यु जी.
भूल सुधार:
आप आ गये हो तो रौनक आ गई हैं, वरना..
मैंने कहा था..
कुछ समय पश्चात् आपको स्वयं लगेगा कि आलोचनाएँ प्रत्यालोचनाएँ तो स्वस्थ, जीवंत लेखन के लिए जरूरी हैं - बस उन्हें व्यक्तिगत रूप से कभी न लें...
उम्मीद है अपने लेखन में और अधिक जीवंतता लाएंगे, और नित्य प्रति दो-तीन पोस्टें लिखा करेंगे :)
आप जा गये हो तो रौनक आ गई हैं, वरना..
हुं....... असली बात सामने आ ही गई ना ... आप लिखना चाहते थे" आप जो गये हो तो रौनक आ गई थी"
मैरे बिना रौनक का आनंद लूटना चाहते थे?
राज नहीं बताऊंगा जी किसी को नही बताऊंगा कि आप..B.Com पास है, मैने किसी को नहीं बताया ना?
एक दिन और संन्यास जारी रखते तो क्या बिगड़ जाता सागर भाई. मैं आपके दर्द को अपनी क़लम में समेटने का प्रयास कर रहा था. लेख अधूरा ही रहा. चलो अब आ ही गए हैं तो लिखाई कैंसल.. कभी अलविदा ना कहना..
आप भी ना उमा भारती वाली इश्टाइल मारते हैं.
यह हुई अच्छी बात
स्वागत है नाहर भाई.
स्वागत है। वैसे बिना अनुमति के निजी डाक सार्वजनिक करना ठीक नहीं।
हम सभी आश्वस्त थे कि आप हमें छोड़ कर नहीं जाएँगे, लेकिन चूँकि आपका नया पोस्ट दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए कुछ परेशान भी थे। हमलोगों की ऑनलाइन और मुखामुखम बातचीत में भी आप छाये रहे। एक तरह से आपके इस 'अल्पकालिक संन्यास' ने आपकी टी.आर.पी. इतनी बढ़ा दी है कि शायद ही कोई आपके किसी पोस्ट को अब नजरअंदाज करने की गुस्ताख़ी कर पाए।
ब्लॉग पर अनपेक्षित एवं अप्रिय टिप्पणियों से नाराज होने की कोई जरूरत नहीं। जब मैंने आरक्षण के समर्थन में 'स्टैंड' लिया था तो मैं अप्रिय एवं अनपेक्षित टिप्पणियों के लिए पहले से तैयार था। कुछ मित्रों ने जानबूझकर अनाम रहते हुए अपशब्दों का प्रयोग तक किया था। जो टिप्पणियाँ अभद्रता की सीमा लाँघ रही थीं उनको मैंने 'डीलीट' कर दिया। लेकिन बहस से मैं कभी कतराया नहीं, मोर्चा छोड़कर भागा नहीं। आप तो मुझसे अधिक बहादुर हैं। मुझे उम्मीद है कि आप फिर कभी संन्यास की घोषणा नहीं करेंगे।
Your name rings a bell!
This message is for Rajeev Tandan
Rajeev Ji do you,HBTI,Operating system class and myslef have something in common? I don't know your email id, but you can write me at atularora @ rojnamcha . org
प्रिय अतुल,
तुम्हारा आँकलन बिल्कुल सही है। (I am the same - ex. CSE deptt faculty HBTI) आखिर नाहर जी के चिठ्ठे ने यह राज़ खोल ही दिया इसलिये यह व्यक्तिगत जवाब यहां टिप्पणी के रूप में दे रहा हूं वरना तुम्हारे लेख तो मैं महीनों (कदाचित वर्ष) से पढ़ता आ रहा हूं। चलो एक राज़ मैं भी सार्वजनिक करता हूं - पहली बार एचओवी लेन पढ़ने पर आश्चर्य हुआ कि उस समय का एक संकोची और मेहनती विद्यार्थी इतना मुखर हिन्दी लेखक कैसे हो गया। चलो नाहर जी के अल्पकालिक विराम का कुछ तो भला हुआ, तुमको एक आश्चर्य तो मिला - सुखद या दुखद यह तो तुम ही जानो। शेष व्यक्तिगत ई-मेल द्वारा ।
ई-स्वामी के बाद अब सागर चंद नाहर दूसरे ब्लागर हो गये जो ब्लागिंग बंद करने की
धमकी देने के बाद वापस आये। अच्छा लगा। वापस आने पर स्वागत ,बधाई। शुक्रिया कि बाकी तमाम साथियों के साथ हमारी बात का ख्याल करके यह ब्लाग-वापसी का निर्णय लिया। आलोक की बात विचारणीय है। अतुल-राजीव मिलन का वायस बना यह मुद्दा ,खुशी की बात है । दोस्तों के पुर्नमिलन पर बधाई।
लिखते रहें, लिखते रहें. हम पढने वाले हाज़िर हैं
सागर भैया,
पहले तो धन्यवाद जो आपने हमारी बात सुनी (और समझी भी) - ब्लागजगत को छोड़ कर न जाने की.
उससे भी बड़ा धन्यवाद - हमारा सुझाया हुआ शीर्षक अपनी -अल्पविराम के बाद वाली पहली प्रविष्टि पर रखा...
उससे और भी बड़ा धन्यवाद -हमारा नाम भी लिखा...!!
वैसे मन तो हो रहा है कि उससे और भी बड़ा धन्यवाद दूँ -हमारा खत सार्वजनिक करने हेतु परन्तु आलोक भीया की टिप्पणी पढ कर चुप हो गया हूँ. :)
वैसे तो मैने कहा था कि मन ही मन दुआयें दुंगा, पर चुँकि आपने हमारा खत सार्वजनिक रुप से चौराहे पर चिपका दिया है, सो, हम भी "खुल्ले" हो गये.
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ओर भीया, आप भी काँ हर किसी ऐरे गेरे नत्थू खैरे की (मेरी) बात दिल पे ले लेते होंगे यार. अरे यार भीया, में तो मजाक कर रिया था यार, में कोई सच में थोडे ना बापस आने को के रिया था, आप तो सच मेंईं बापस आ गये.
चलो, अब आ गये हो तो छोड़ो लम्बी-लम्बी ..अप्पन तो हैंईच्च झेल्ने के लिये.
:)
हमें मालूम था कि आपका पिछला लेख मज़ाक ही था क्योंकि मूंछ वाले बहुत मज़ाकी होते हैं
आपकी एक पोस्ट ने तो समस्त चिट्ठा जगत को हिला कर रख दिया था| अब गुज़ारिश है, ऐसा मज़ाक कतई ना किजियेगा| हम जैसे नाज़ुक दिल रखने वालों का भी तो कुछ सोचिये|
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद
SHUAIB said...
हमें मालूम था कि आपका पिछला लेख मज़ाक ही था क्योंकि मूंछ वाले बहुत मज़ाकी होते हैं
Wednesday, July 05, 2006 11:40:24 PM
ub yeh to jyadati hai moonchh veehino par!ub jub bhi kisi ko hunsane ki cheshta karoongi to moonchh lagakar karrongi.
vaise,dhnyavad nahar ji chukulon ke liye.
ghughutibasuti
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