परिचर्चा में मुस्लिम आतंकवाद से शुरु हुई बात कहाँ तक पहुँच गई है, मैं भी वहाँ लिखना चाहता था परन्तु यहाँ लिखना ही ठीक लगा ।
कुछ मेरी भी सुनो, जैसा आप जानते हैं गोधरा दंगों और 1992 के दंगों के समय में सुरत, गुजरात में रह रहा था, दंगे के दिनों में मैने खुद मुसलमानों को मुसलमानों की दुकानें लूटते और हिन्दुओं को हिन्दुओं को नुकसान पहुँचाते देखा है।मेरे कहने का मतलब यह है कि दंगाईयों का कोई धर्म या मजहब नहीं होता।
हमारे मकान मालिक स्व. हैदर भाई मुस्लिम थे, दो साल हम साथ रहे, उनके मांसाहार की वजह से कई बार हमारी बहस हुई, पर आज उस बात को १५ साल बीत चुके परन्तु प्रेम में कोई कमी नहीं आई, बड़े भाई बैंगलोर रहते हैं, जब भी सूरत आते सबसे पहले शमीम मौसी के पाँव छूने जाते हैं मेरा भी यही है जब तक सूरत रहा १५ दिन में एक बार उनके घर जाना पड़ता था। शायद मेरी सगी माँ जितना प्रेम करती है, उतना ही प्रेम शमीम मौसी करती है। हर बार मिठाई, फ़ल फ़्रूट आदि जबरदस्ती देती है, अगर मना करो तो कहती है कि तेरी माँ देती तो क्या मना करता? हम कुछ कह नहीं पाते, यह लिखते समय शमीम मौसी और उनके बच्चों फ़िरोज और शबनम का प्रेम याद कर आँख से आँसू टपक पड़े है। क्या हर मुसलमान बुरा होता है और हर हिन्दू जन्मजात शरीफ़?
जब हैदर भाई का निधन हुआ और मैं मौसी से मिलने गया तब पता चला कि मुस्लिम समाज में पति के निधन के बाद स्त्री ४० दिन तक किसी गैर मर्द से नहीं मिल सकती पर मौसी हम से मिली और हमारा प्रेम देख कर उनके समाज के दूसरे लोग भी आश्चर्यचकित हो गये। मैं अपने दोस्तों को भी अपने साथ उनके घर गया हुँ मेरे हिन्दू दोस्त भी नहीं मान पाते कि शमीम मौसी हिन्दू नहीं है! जब कि शमीम मौसी पक्की नमाजी मुसलमान स्त्री है और बिना नागा पाँचों वक्त की नमाज अदा करती है।
सुरत छोड़ते समय शबनम प्रसूति पर सुसराल से आयी हुई थी, मेरे पाँव छूने लगी मैने उसे ऐसा नहीं करने दिया और १५१/- उसे दिये तो मौसी ने मना कर दिया, मैने कहा मौसी आप कौन होती है भाई बहन के बीच में पड़ने वाली ? मैं मेरी बहन को कुछ भी दँ आप नहीं रोक सकती उस वक्त का दृश्य याद कर अब और लिखने की हिम्मत नहीं रही । आँखों से आँसू बह निकले है। उस दिन मेरे साथ मेरा एक मित्र जगदीश चौधरी था वह उस दिन रो पड़ा था ।
यह आप सब को शायद अतिशियोक्ती लग सकती है, परन्तु यह सच है और आप मुझसे शमीम मौसी का फ़ोन नं लेकर उनसे सारी बातें पूछ सकते हैं। वो महान मुसलमान महिला इस पर भी हमारा बड़प्पन जतायेगी कि सागर और शिखर बहुत अच्छे हैं जो हम से इतना प्रेम करते हैं । धन्य हैं एसे मुसलमान परिवार जिनके ह्रूदय में हिन्दू मुसलमान नहीं बल्कि प्रेम ही प्रेम भरा है।
जब कभी भी दंगे होते हैं हम अक्सर मुसलमान को कोसते है परन्तु मैं नहीं मानता कि हर मुसलमान बुरा होता है। हर मुसलमान दाऊद इब्राहीम नहीं होता, उनमें से ही कोई डॉ. कलाम बनता है, हमारे सुहैब भाई भी इस का सबसे अनुकरणीय उदाहरण है जो अपने आप को मुसलमान की बजाय हिन्दुस्तानी कहलाना ज्यादा पसन्द करते हैं।
बुधवार, जुलाई 12, 2006
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12 टिप्पणियां:
परिचर्चा मे मै यही कह रहा था जो आपने लिखा है
ठीक कहा,
'दंगाईयों का कोई धर्म या मजहब नहीं होता।'
बिलकुल सही कहा आपने
यह प्रश्न उतना ही गलत है जितना यदि आप पूछते कि क्या कोई मुसलमान खराब नहीं होता? इसलिये जरा और सटीक प्रश्न पूछे जाँय | जैसे कि इस विस्फोट में मुसलमानों का हाथ होने की कितनी सम्भावना है ? इसके लिये मुस्लिम तुस्टीकरण कितनी जिम्मेदार है ? क्या मुसलमान हिन्दुओं की अपेक्षा अधिक हिंसक और कट्टर हैं ? आदि
सुरत में एक समय हम भी जिस मकान में रहते थे उसके मालिक मुसलमान थे, भले इनसान थे. हर दिपावली को मुबारकवाद देने आते थे. हम भी उनके बेटे की शादी में शामिल हुए थे. उनके छोटे भाई कि बच्चीयों के साथ खेल कर मेरी बहन बड़ी हुई हैं. पंकज ने अपने दोस्त इमरान से नमाज पढ़ना सिखा था.
बाद में हमने घर बदला तो हमारे सामने वाले घर में मुसलीम परिवार रहता था, हमारे उन के साथ भी अच्छे सम्बन्ध थे.
ये सारे मुसलमान बुरे कतई नहीं हैं.
सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, पर अधिकतर आतंकवादी मुसलमान हैं. उनके बारे में लिखे को मुसलमान विरोधी क्यों माना जाता हैं.
मैं नास्तिक हुं, कथित सेक्युलर
भाईसा,
आप नही लिखते तो मजा ही नही आता.
पर भाईसा बात वही की वही जा टिकती है. मै कहता हुँ सारे मुसलमान अच्छे नही होते, तुष्टिकरण बन्द किजीए. आप कहते है सारे मुसलमान खराब नही होते, विरोध मत किजीए. आप भी सही मै भी सही.
मुझे गुस्सा उन कथित सेक्युलरो पर आता है जो मुस्लीम तुष्टिकरण करते है. अरे जरूरत क्या है, यह तो बताओ.
परिचर्चा में आपने मुझे पढा होगा. देखो कैसे हम एक भिखारी देश के निट्ठलों को भरे जा रहे है. और उन्होने लोगों का जीना हराम कर रखा है.
उन्मुक्त जी कहते है, दंगाईयों का धर्म नही होता. कैसे नही होता? धर्म के नाम पर तो दंगा करते हैं.
इस्लामी आंतकवाद नही है? कैसे नही है. इस्लाम के नाम पर तो आंतकवाद फैलाते हैं. मैरा विरोध उनके लिए है.
कोई राष्ट्रपति कलाम या सुहैब के लिए थोडे ही है, वे भी मुसलमान हैं.
मै तो बाला ठाकरे, तोगडिया की भी भ्रत्सना करता हुँ. वो तो हिन्दु है. कट्टर हिन्दु.
मुझे नही पता सेक्युलरीजम की नई व्याख्या क्या है. मुझे जानना भी नही. मुझे ना तो अरून्धति रोय बनना है ना दिलिप कुमार ना मेधा पाटकर ना जावेद अख्तर.
छोडो भाईसा,
नई कक्षा लगा ली है. हाजरी लगा लो. मूड फ्रेश करते हैं. :-)
बिल्कुल ठीक।
आतंकवादियों का कोई जात-धर्म नहीं होता वरना संसद, मंदिर-मस्ज़िद, वायुयान और होटल जैसी जगहों पर विस्फोट ना हों।
मानवता से हर धर्म को प्यार है।
-प्रेमलता
सागर भाई दो बाते जो जहन में आई आप का लेख पढ़कर
१. नमाज अदा करते हैं या अता? शायद रमन भाई खुलासा कर सकें।
२. आम मुसलमान को अच्छा खराब का सर्टिफिकेट देना वैसा ही होगा जैसे कोई अमेरिका में सीएनएन पर त्रिशूल चमकाते बजरंगीयो को देख कर हम सबको हिंदू उग्रवादी मान ले। पर वह मान नही पाते क्योंकि बाबरी मस्जिद गिरनेपर या गुजरात के दंगो पर मुस्लिम नेताओं से ज्यादा जो लोग विरोध करते हैं चाहे वे सीताराम येचुरी हो , रामविलास पासवान हों या फिर शरद यादव सब के सब हिंदू ही हैं। नेताओं की छोड़िये , किसी भी सामजिक बैठक में , जलसे में चर्चा छिड़ी हो तो जितने हिंदू समर्थक बजरंगियो के निकलेंगे उतने ही उनके विरोधी भी होंगे। पर मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियी या तो काश्मीर, न्यूयार्क, मैड्रिड और मुंबई की घटनाओं का विरोध नही करते , या फिर मीडिया उन्हें प्रमुखता नही देता, जो थोड़े बहुत करते भी हैं वे साथ में फिलीस्तीन और इराक का स्यापा करना नही भूलते। इसलिये आम धारणा वही बन जाती है जो आपके लेख का शीर्षक है।
महमहिम राष्ट्रपति का धर्म ही भारत है जो भारत के लिए जीते हैं और कुपया ध्यान दें मुझे मुसलमानों मे शुमार ना करें
हर मुसलमान आतंकी नहीं होता, पर हर आतंकी मुसलमान होता है। यह बात अतिशयोक्ति ही है, पर विश्व स्तर पर देखा जाए तो इस नियम के कम ही अपवाद मिलेंगे।
बिलकुल सही कहा भईया :)
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