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गुरुवार, जून 29, 2006

ये हमारे पथ प्रदर्शक ?


धर्म प्रचारकों पर मास्साब के विचार जान कर प्रसन्नता हुई, मैं भी कुछ कहना चाहता हुँ, सबसे पहले यह कहना चाहूंगा कि मुझे यह लिखने से इन का भक्त ना समझा जाये क्यों कि मैं पहले ही इन दोनो साधुओं के बारे में यहाँ लिख चुका हुँ।
सबसे पहले आईना जी ने लिखा "ओशो राम देव से लेकर श्री श्री रविशंकर सब की नजर अमीरों पर ही होती है। और सुनील जी ने लिखा श्री श्री रविशंकर का नाम बहुत सुना था, उनका बीबीसी की एशियन सर्विस पर लम्बा साक्षात्कार सुना, तो थोड़ी निराशा हुई उनके उत्तर सुन कर. उनका कहना कि उन्होने सुदर्शन क्रिया का पैटेंट इसलिए बनाया ताकि सारा पैसा उनकी फाऊँडेशन का अपना बने तथा उसका अन्य लोग पैसा न कमा सकें, सुन कर लगा मानो किसी व्यापारी की बात हो, न कि कि महात्मा या गुरु की!
इस बारे में कहना चाहता हुँ कि श्री श्री रविशंकर अगर सुदर्शन क्रिया या उनके अन्य कार्यक्रम सिखाने का अगर पैसा लेते है तो इसमे कुछ बुरा नहीं करते, क्यों कि यह पैसा श्री श्री की जेब में नहीं जाता, उन पैसों से कई समाज उपयोगी कार्य होते है, इस बारें में अधिक जानकारी के लिये त्सुनामी और भूकंप के बाद के समाचार पत्रों को एक बार फ़िर से पढ़ लें, और सुदर्शन क्रिया जिन लोगों ने नहीं की वे इस बारें कुछ नहीं कह सकते, अपने अनुभव नहीं बता सकते।मैने की है मै मानता हुं कि इस क्रिया के लिये 500/- की बजाय 5000/- भी अगर मांगे तो दिये जाने में कोई हर्ज नहीं है। और वैसे भी मुफ़्त की चीज हमें हज़म जरा मुश्किल से होती है, हम शुल्क देते है तो उस के प्रति गंभीर होते हैं, और कुछ अवचेतन मन से ही पर अपना पूरा पैसा वसूल करते हैं। यही क्रियाएं अगर मुफ़्त में मिलने लगेंगी तो कोई भी इसके प्रति गंभीर नहीं होगा।
और रही बात अमीरों पर नजर होने की तो मैं कहना चाहता हुँ कि स्वामी रामदेव इस बात को स्वीकारते हुए कहते हैं हैं कि उन के शिविरों का सारा पैसा इन अमीरों की जेब से आता है, मैने कहीं पढा़ था कि जो लोग अच्छे लेखक नहीं सकते वे अच्छे आलोचक बन जाते हैं जैसा ही कुछ यह है ।
कुछ इसी तरह कि हमें ब्लॉगर पर मुफ़्त लिखने को मिलता है तो कुछ भी अंट शंट लिख देते हैं, यही हमें इस के पैसे देने पडे़ तो हम भी रह अच्छा लिखना शुरु कर देंगे और अपनी कीमत वसूल करने की कोशिश करेंगे।
यही बात स्वामी रामदेव पर लागू होती है। उन्होनें कभी धर्म का प्रचार नहीं किया, कभी शिष्य नहीं बनाये, वे अगर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शीतल पेयों को पीने के खिलाफ़ बात करते हैं तो क्या गलत करते हैं। भारत सरकार के स्वास्थय मंत्री डॉ अम्बुमणि रामदास खुद स्वीकार कर चुके है कि इन पेयों में कीटनाशक होते हैं और श्रीमती सुनीता नारायण की वैज्ञानिक टीम तो साबित भी कर चुकी है।
सुरत शिविर में मैने अपनी पत्नी के साथ भाग लिया और पाया है कि स्वामी रामदेव के बताये प्राणायामों से शरीर पर लाभ होता है, यह मैं खाली पढी़ सुनी बातों पर विश्वास कर नहीं लिख रहा,
ना ही यह कोई सम्मोहित हुं, स्वयं अनुभव कर लिख रह हुँ, मेरी पत्नी का वजन तो 5 kg कम हुआ ही साथ में और भी कई शारीरिक लाभ हुए।
रवि कामदार जी को पता नहीं एक दो फ़ुट की दाढी़ वाले संत में स्त्री कहाँ नज़र आयी ये समझ में नहीं आता, अहमदाबाद तो में देख चुका हुँ , वहाँ तो महिलाओं के दाढी़ नहीं होती फ़िर पता नहीं वे कहाँ देख आये। पंकज भाई होती है क्या ? और करण जौहर कब दाढी रखते थे ये रवि जी को ज्यादा पता होगा।क्या उन की आवाज पतली है इस वजह से आप एसा कह रहे हईं तो मत भूलिये कोई हमारा प्रिय पात्र भी किसी शारीरिक कमी या अपाहिजता का शिकार हो सकता है तब क्या हम उनके लिये भी यही शब्द प्रयोग करेंगे?
रवि जी माना कि वे अमीरों के गुरू हैं, पर मैं मासिक मात्र 4000/- कमाता हुँ पर उन के ध्यान और क्रियाओं को पसन्द करता हुँ। और किसने कहा कि श्री श्री गाँवों में नहीं जाते? त्सुनामी से हुए नुकसान के बाद उन्होनें कई बार गाँवों का दौरा किया है।
टिप्पणी करना बहुत आसान है कुछ लोगों को बुद्धिजीवी होने का भ्रम हो गया है श्री श्री के लिये कहते हैं खेर इनको हम प्रसिध्धि के भूखे इस लिये कह सकते है क्योकि यह भी अपने आगे श्री श्री लगवाते है!! और अपने भक्तों को श्री श्री कहने से रोकते भी नहीं वे ही अपने आप को तत्वज्ञानी की ही उपाधी दे रहे है, पता नहीं ये कैसा तत्व ज्ञान है। हमने तो एसा तत्व ज्ञान कहीं नहीं देखा किसी ने देखा हो तो बताओ भाई लोग।
मैं आसाराम जी बापू, नीरू माँ, पान्डूरंग शाष्त्री या कोई अन्य धार्मिक प्रचारक की बात नही करता क्यों कि दोष उनका नहीं कुछ हमारा भी है जो हम इन लोगों को सर माथे चढ़ाते हैं और बाद में जब छले जाते हैं तो रोना रोते हैं।

यह सब लिखने से मुझे इन का भक्त नहीं समझा जाये क्यों कि मैं पहले ही कह चुका हुँ कि मैं इन का भक्त नहीं हुँ, और इस के अगले अंक में इन लोगों की खिंचाई भी होगी। ये लोग चाहे जैसे हो हमसे से तो श्रेष्ठ है



4 टिप्‍पणियां:

Jagdish Bhatia ने कहा…

नाहर भाई, कहां तो लिखना बंद कर दिया था और कहां आज दो दो पोस्ट एक साथ?

भाई मैंने किसी बाबा कि सिद्धता पर टिप्पणी नहीं की। ओशो की बहुत सी पुस्तकें मैंने भी पड़ी हैं और उनसे बहुत कुछ सीखा भी है। राम देव का योग सीख कर मैने भी आठ किलो वजन घाटाया और पेट की पुरानी समस्या से भी छुटकारा पाया। इस सब के बावजूद यह सच्चाई है कि इन सब बाबाओं की नजर अमीरों पर ही होती है।

नीरज दीवान ने कहा…

ओशो क्रांतिदृष्टा थे. उनकी किताबों से बहुत कुछ समझा. स्वामी रामदेव योग का प्रचार-प्रसार करते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि वे आडंबरों, जाति-धर्म की बातें नहीं करते. बाक़ी बाबाओं को सुनने-समझने की प्यास नहीं मुझमें. नाहर जी के विचार प्रभावित करते हैं.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

नासमझ ये धर्मगुरू नही है. नासमझ जनता है. ये कोई महान लोग नही है, सागरभाई. हाँ चतुर जरूर हैं. जैसे हर कोई धीरूभाई नही बन सकता. क्योंकि उनके जैसी सोच, हिम्मत और काबलियत हर किसी में नही होती. इसी तरह हर कोई श्री श्री, ओशो या रामदेव भी नही बन सकता. ये सभी कुशल व्यापारी ही हैं. पर लोग इनको पूजते हैं. तकलीफ वहाँ पर है. हम ये नही देखते कि हममें क्या काबलियत है, पर शोर्टकट रास्ता निकालना चाहते हैं. किसी गुरू की शरण में जाकर मोक्षप्राप्ति करना चाहते हैं. पर एक अच्छा जीवन नही जीना चाहते.

hemanshow ने कहा…

"ये ना सोचे हमें क्या मिला है, हम ये सोचे किया क्या है अर्पण"।
तो भैया मूल मन्त्र यही है। नाहर जी की बात से मैं सहमत हूं।
मुझे आश्चर्य ये है कि रामदेव जी की बातों से फ़ायदा लेकर भी हम क्यूं अपना समय उन्हैं बुरा-भला कहने में गंवा रहे हैं? अरे भैया, इससे अच्छा तो किसी का कुछ भला ही किया जाये।
माना वो सभी अमीरों के लिये करते हैं, तो भई वो भी हमारी तरह मनुष्य है और उन्हैं अभी पूर्ण मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है। धीरे-२ वो ज्ञान प्रप्त करेंगे तो मुक्त होंगे।
लेकिन हम अपनी गिरेबान में झांके कि हमने देश के लिये क्या किया है? हमने उस शहर के लिये क्या किया जहां हम पैदा हुए, पले-बढे? या फिर हम अपनी ज़िन्दगी में इतने खो गये कि अब हमें उन सबके लिये समय ही नहीं।
मैं शुक्रगुज़ार हूं रवि शंकर और बाबा रामदेव जी का, जिन्होने मुझे योग विद्या (जो पहले इतनी कठिन व असाद्य समझी जाती थी) के बारे इतना बताया।
--हिमांशु शर्मा