चाहे हजार तकलीफ़ें हो, अमरीका से हजार गुने अपराध होते हों पर फ़िर भी भारत सबसे महान है। पैसों की चमक दमक भले ही अमरीका सी ना हो पर यहाँ जो प्रेम है वह कहीं नहीं है।
हम में से शायद बहुत कम लोगों ने एक दूसरे को आमने सामने से देखा होगा पर यह प्रेम नहीं है तो क्या है कि सागर चन्द जब जीतू भाई से नहीं मिल पाता तो उसे इस तरह का दुख होता है मानों अपने सगे बड़े भाई से नहीं मिल पाया हो, और जीतू भाई अगले दिन फ़ोन कर ना मिल पाने के लिये अफ़सोस प्रकट करते हैं।
यह प्रेम नहीं तो क्या है कि सागर की एक फ़रमाईश पर आदरणीय अनूप जी( फ़ुरसतिया जी) 10 पेज की फ़िराक गोरखपुरी की कविता टाईप कर पढ़वा देते हैं। दूसरे ही दिन फ़िर गुलजार साहब की रचना पढ़वाते है।
यह भारत के ही लोग है जो अपने देश की आलोचना सुन कर भी खामोशी से पढ़ रहे हैं वरना यह जापान या कोई ओर देश होता तो अपने देश के बारे में बुरा कहने वालों के साथ क्या सूलूक करता यह आप सब बेहतर जानते होंगे।
भाई लोग तुलना करना बन्द करो, होगा अमरीका श्रेष्ठ; भारत किसी से, कहीं भी कम नहीं है।
गुरुवार, जून 29, 2006
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
सागर भाई
लगता है कि बहस की दिशा कहीं और ही मुड़ रही है। बात अनूप भाई ने रीडर्स डाइजेस्ट के सर्वे से शुरू की थी। मुद्दा सिर्फ यह था कि अमरीकी समाज आखिर है कैसा, जो मीडिया दिखाता है वैसा न असली भारत है न असली अमरीका। अनूप भाई की शिकायत अमरीका से बसे भारतीय ब्लागरो से है कि वे अमरीका समाज का ज्यादा आईना नही दिखाते। रमन कौल जी ने सर्वे के विराधाभासो ज्यादा स्पष्ट नजर से देखा । पता नही कहाँ से अमरीका और भारत के बीच श्रेष्टठता की होड़ की बात आ गई। यार , हमारे पुराने लेखों को देख कर दिल से बताईये, कहाँ से हम आपको ल्यूडाब्स दिख रहे हैं? हम सब दिल से भारतीय हैं और रहेंगे, यकीन न हो तो कभी इधर आकर देखिये, भारत से ज्यादा भारतीय संस्कृति का हम पालन करते है। बस देखने का नजरिया थोड़ा विस्तृत हुआ है । इस बात को इस तरह से समझिये कि अपना घर सबको हमेशा जान से प्यारा होता है। पर घर के बाहर आये बिना उसकी दीवारो पर लगे धब्बे नही दिखते। अगर उन दाग धब्बों कि ओर हम इशारा करते हैं तो यह नही कह रहे कि हम जिस बहुमँजिला होटल से घर के दाग धब्बों को देख रहे हैं वह होटल घर से अच्छा है। हम सिर्फ वह दिखाने कि कोशिश कर रहे हैं जो कभी हमें खुद घर के अँदर से नही दिखता था। अब बहस कुछ ऐसे मुड़ गयी है कि हमसे कहा जाये कि अपने होटल के दाग धब्बे क्यों नही दिखाते दुनिया को। यार अपना घर अपना घर है, मकसद उसे बेहतर बनाना है , होटल में भी धब्बे हैं पर उसे गिनने से घर तो साफ नही हो जायेगा न?
हमारी पूरी हिंदी ब्लागजगत ओपन सोर्स वाले लिनक्स सर्वर पे, ओपन सोर्स वाले अपाचे वेबसर्वर पे ओपन सोर्स वाली पी.एच.पी- माई एस्क्यूएल बेस्ड वर्डप्रेस पर चल रही है - करोडों लाईन्स के मुफ्त जनहित प्रोजेक्ट बिना मेलोड्रामेटिक हुए बिना भावनाओं की नहरें बिछाए बिना व्यक्तिगत हुए चल रहे हैं बाकी दुनिया में जिनका लाभ सबको मिला है. लेकिन वाह रे देसी मन .. खेत मे हगने जाता है और गाने लगता है "मेरे देस की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती" और भावनाओं में बहकर ताम्र लोट पे लात मार देता है १० मिनट का प्रोजेक्ट २ घँटे मे खतम होता है. चलिए जी ये भी ठीक है.
अतुल की बात सही है। स्वामी को गाने बहुत याद आते हैं क्या बात है?
कम शब्दों में आपने दिल की बात बिना लाग-लपेट के लिख डाली है/ बढ़िया लगा/ भारत को अच्छा बताने पर आजकल तो अमेरीकी भी नहीं चिढ़ते/ भला अमेरीकन देसी क्यों चिढ़ते हैं?
यह बहस भारत बनाम अमेरिका कैसे हो गई?
दोनो देशो के अपने गुण दोष हैं. अपने अपने शिष्टाचार के तरीके हैं. अमेरिका कि अच्छाई बताना भारत कि बुराई करना नहीं हो सकता. हम सब चाहे कहीं रहे भारतीय ही रहेंगे. भारत को सर्वश्रेष्ट बनाना हमारा साँझा प्रयास हैं.
किसी कि अच्छाई से सिखने में बुराई क्या हैं?
सागरजी बहुत भावुक हो रहे हैं आप. देश के प्रति आपकी भावनाओं को सलाम करता हुं. क्या आपने अपने कैफे में भारत का ध्वज लगाया हुआ हैं? अब तो छुट हैं लगाईये. हम तो वर्षो से लगाते आये हैं. इसी से प्रेरणा मिलती रहती हैं. गर्व भी होता हैं. (हाँ यह तरीका अमेरिकन लग सकता हैं.)
एक टिप्पणी भेजें