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रविवार, जून 11, 2006

हैदराबाद ब्लॉगर मीट : जो हो ना सकी


कुछ दिनों पहले जीतू भाई से गूगल टाक पर बात हुई तब उन्होने बताया कि वे दिनांक १०-०६-२००६ को नागपुर से बंगलोर जायेंगे हैदराबाद उस रास्ते में ही आता है और गाड़ी लगभग १५ मिनीट सिकन्दराबाद स्टेशन पर रुकेगी।
मैं यह जान कर बड़ा प्रसन्न हुआ कि चलो जीतू भाई से मिलना होगा, यह बात श्री नितिन बागला जी को भी बताई तो वे भी बड़े खुश हुए। जीतू भाई ने मुझसे पूछा कि मैं आपको अपना कोच नं कैसे दुंगा, क्यों कि उनका टिकिट कन्फ़र्म नही हुआ था और वेटिंग लिस्ट भी कोई खास नहीं थी ५/६ वेटिंग थी सो कन्फ़र्म होना लगभग तय था, तब मैने उनसे उनके टिकिट का पी.एन.आर. नं. ले लिया और उस दिन से दिन में तीन बार चेक कर रहा था कि टिकिट कन्फ़र्म हो और कब कोच नं. पता कर जीतू भाई से मिला जाये !!!
पर हम जो सब सोचते है वो कब होता है दिनांक ७--६-०६ को नितिन जी से बात हुई तो उन्होने बताया कि उनके नानाजी का देहांत हो गया है सो वे ९ को राजस्थान अपने गाँव जाने वाले हैं और जीतू भाई से मिलने नहीं आ पायेंगे। खैर.... दिनांक १०.०६ को सुबह जब भारतीय रेल्वे की साईट पर पी एन आर नं डाला तो वहाँ लिखा था Can/mod यानि कि केन्सल या मोडिफ़ाईड। अब क्या किया जाय़ यह भी पता नहीं पड़ रहा था कि जीतू भाई आने वाले हैं या नहीं। पंकज भाई उर्फ़ मास्साब से पूछा कि उनके पास क्या उनका टेलिफ़ोन नं. है तो पता चला कि नहीं। अब कोई रास्ता नहीं था सम्पर्क करने का तो मैने सोचा कि रेल्वे स्टेशन ही चलते हैं। १५ मिनिट में तो आराम से ढुँढ लिया जा सकता है।
तो साहब में ६.४५ पर रेल्वे स्टेशन पर पहुँचा तो पता चला कि गाडी़ अपने सही समय यानि ७.०० बजे आयेगी, आखिर गाडी़ अपने सही समय यानि ७.२० पर स्टेशन पर आई!!!!
भारतीय़ रेल्वे जिन्दाबाद!! लालू यादव जिन्दाबाद!!!
अगर ट्रेन २०मिनीट भी लेट हो तो भी उसे सही समय कहा जाता है, ट्रेन भी कौनसी राजधानी एक्सप्रेस जो भारत की सबसे तेज गाड़ियों में गिनी जाती है।
खैर साहब ट्रेन पूरी छान मारी तीन चक्कर आगे से पीछे लगा लिये, तभी एक सज्जन कुछ सिन्धी महिलाओं से सिन्धी में बातें करते दिखे, शकल सूरत से बिल्कुल अपने जीतू भाई!!
मैं खुश होकर उनकी और लपका और उनसे पूछा
"आपका नाम जीतू भाई है?
उन्होने कहा "हाँ, पर आप कौन?
मैने कहा मैं सागर चन्द नाहर।
उन्होने कहा मैने आपको पहचाना नहीं!!
मैं एकदम चौंक गया जीतू भाई मुझे शक्ल से नहीं पर नाम से भी नही पहचाने ये तो हो नहीं सकता! मैने पूछा
आप कुवैत से आयें हैं?
उन्होने कहा "नही"
तब मुझे लगा कि यह तो अच्छी मजाक हो गयी जिन्हें मैं जीतू भाई समझ बैठा था सयोंग से उनका नाम भी जितेन्द्र था और थे भी सिन्धी।
आखिर आप के सागर चन्द उदास थके और कदमों से वापस घर आ गये ।
पुनश्चय: यह प्रविष्टी टाईप कर पोस्ट करते समय मेरे जिजाजी (जिनका सुपर स्टोर मेरे घर के सामने है और मैने फ़ोन नं उन्ही का दिया था) ने एक संदेश दिया कि जब मै खाना खाने रेस्टोरेंट गया था ( पत्नी और बच्चे छुट्टियाँ मनाने गये हैं) तब कुवैत वाले जीतू भाई का फ़ोन आया था कि वे हैदराबाद नहीं आ पा रहे है और नागपुर से सीधे ही बेंगलोर जायेंगे।
जीतू भाई अगर पढ रहे हों तो उनसे अनुरोध है कि खेद व्यक्त ना करें क्यों कि इसमें आपका कोई दोष नही है।
संभव हो सके तो वापसी के समय इधर जरूर आयें।

5 टिप्‍पणियां:

नीरज दीवान ने कहा…

हद हो गई. ये सूचना आपको पहले ही मिल जानी चाहिए थी. सुन लो जीतू भैया. सागर भाई को नाहक ही परेशां कर डाला. इधर, दिल्ली तो आ रहे हो ना. जयपुर यात्रा के लिए हम उत्सुक हैं.

Manish Kumar ने कहा…

आपने अपने स्तर पर जो प्रयास किया वो काबिलेतारीफ है ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

सागरजी ,ज्यादा भावुक न हों। जीतेंदर की गोली देने कीपुरानी आदत रही है।

बेनामी ने कहा…

लगता हैं हर दुसरा सिंधि 'जितेन्द्र' नाम रख लेता हैं.
टेंशन मती लो, जीतू भाई से अपने स्तर पर निपटा जायेगा. सब मिर्जा कि संगत का असर हैं.

Sagar Chand Nahar ने कहा…

नीरज भाई साहब
सागर बिल्कुल परेशान नहीं हुए, इसी बहाने थोड़ा घूमना हो गया।

अनूप भाई साहब
आज सुबह जीतू भाइ ने मुझे फ़ोन कर सारी स्थिती से अवगत कर दिया है, उन्होनें गोली जानबुझ कर नही दी है।