tag:blogger.com,1999:blog-23868474.post115272356681668328..comments2023-10-19T18:47:03.547+05:30Comments on दस्तक: क्या हर मुसलमान बुरा होता है-2Sagar Chand Naharhttp://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-15229550720433999172007-05-03T16:28:00.000+05:302007-05-03T16:28:00.000+05:30आप जानते हैं भईया परेशानी क्या है... लोग सम्प्रदाय...आप जानते हैं भईया परेशानी क्या है... लोग सम्प्रदाय का तगमा लगा लेते हैं.. छूट मिल जाती है किसी और के बारे मे (सम्प्रदाय) बोलने के लिये।<BR/><BR/>किसी फिल्म का एक सीन था कि एक लावारिस हिन्दू बच्चा कही पडा हूआ था... किसी ने उस बच्चे को नही देखा... कुछ देर बाद एक मुस्लिम महिला उसे अपने घर ले आयी तो हिन्दूओ के अन्दर ममता जाग गयी.... ऐसे कई किस्से आम जिन्दगी मे मिल जाते हैं... <BR/><BR/>मेरे खयाल से ऐसे लोग हिन्दू-मुस्लिम होने का अर्थ ही नही जानते।<BR/>खैर इस्लाम का अर्थ तो मै नही जानती... और हिन्दू का भी नही जानती थी... मुझे एक ईसायी महिला ने बताया हिन्दू होने का अर्थ क्या होता है, तत्पश्चात मैने अपने दादा जी से पूछा था, उसके बाद मूझे अपने आप पर गर्व होता है कि मै वास्तव मे हिन्दू हूँ।<BR/><BR/>महिला के अनुसार-<BR/><BR/>जो दो से हीन हो जाये उसे हिन्दू कहते हैं... मतलब कि जिसे मेरा तुम्हारा ना दिखे बस मेरा दिखे... मेरे लोग, मेरे आदमी, मेरा समाज... अब कोई मेरे से झगडा नही करता, अपनो पर चाकू कोई नही चलाता, चाकू उसी पर चलता है जहां द्वैत भाव आये... सुना है आजकल भाई-भाई एक दुसरे को मार रहे हैं, ऐसा तभी होता है मेरा भाई कि अभिव्यक्ति मिटकर वहा दुसरेपन का आभास हो...<BR/><BR/>आपका मै कितना विशाल होना चाहिये.. पूरे प्राणी आपके कुटुम्ब मे आ जाये... तभी तो कहा गया है<BR/><BR/>"वसूधैव कुटुम्बकम"<BR/><BR/>ये है हिन्दू धर्म। मेरा धर्म... इसमे किसी इंसान के लिये कोई दुर्भावना नही.. क्यूँकि सब मेरे हैं<BR/><BR/>तभी तो "मै और कुछ नही"गरिमाhttps://www.blogger.com/profile/12713507798975161901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-1154450579719384962006-08-01T22:12:00.000+05:302006-08-01T22:12:00.000+05:30हिन्दुत्व अथवा हिन्दू धर्महिन्दुत्व एक जीवन प...<A HREF="http://vishwahindusamaj.com/hindutva.htm" REL="nofollow">हिन्दुत्व अथवा हिन्दू धर्म</A><BR/><BR/>हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक, एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं।<BR/><BR/><A HREF="http://vishwahindusamaj.com/hindutva.htm" REL="nofollow">अधिक के लिये देखियेः </A><A HREF="http://vishwahindusamaj.com" REL="nofollow"> http://vishwahindusamaj.com </A><BR/><BR/><A HREF="http://vishwahindusamaj.blogspot.com/2006/07/blog-post.html" REL="nofollow">चिठ्ठाजगत में स्वागतम्</A>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-1152773969440080372006-07-13T12:29:00.000+05:302006-07-13T12:29:00.000+05:30हर माँ-बाप को अपने बच्चे अच्छे लगते हैं, पर बिगड़ेल...हर माँ-बाप को अपने बच्चे अच्छे लगते हैं, पर बिगड़ेल बच्चे को ठीक करना भी आना चाहिए. वरना वे ही नहीं दुसरे भी इसका परीणाम भोगते हैं.<BR/>सन्दर्भ आप खुद सोच लो.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-1152763863241175642006-07-13T09:41:00.000+05:302006-07-13T09:41:00.000+05:30और भाईसा मै भी वही कह रहा हुँ कि सारे मुसलमान दूध ...और भाईसा मै भी वही कह रहा हुँ कि सारे मुसलमान दूध के धूले नही है. सरकार जो तुष्टिकरण कर रही है, उसका विरोध होना चाहिएपंकज बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/05608176901081263248noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-1152761718335370952006-07-13T09:05:00.000+05:302006-07-13T09:05:00.000+05:30सागर बहुत सही लिखा है लेकिन सेक्यूलर बनने की कोशिश...सागर बहुत सही लिखा है लेकिन सेक्यूलर बनने की कोशिश में कट्टरता में हम पीछे ही रह गयेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23868474.post-1152731040246886442006-07-13T00:34:00.000+05:302006-07-13T00:34:00.000+05:30कई दिनों बाद सागर भाई के ब्लॉग पर आया हूं. बिना चा...कई दिनों बाद सागर भाई के ब्लॉग पर आया हूं. बिना चाय पिए नहीं जाता लेकिन मेरे दिल की बात वो कह गए. मत-मतांतर की गुंजाइश औरों ने छोड़ी होगी. अपन ने नहीं लिहाज़ा मैं भावनाओं की क़द्र करते हुए सभी के लिए निदा फ़ाज़ली की ये गज़ल पेश कर रहा हूं. <BR/><BR/>मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में<BR/>मुझको पहचानते कहां हैं लोग<BR/><BR/>रोज़ मैं चांद बन के आता हूं<BR/>दिन में सूरज सा जगमगाता हूं<BR/><BR/>खन-खनाता हूं मां के गहनों में<BR/>हंसता रहता हूं छुप के बाहों में<BR/><BR/>मैं ही मज़दूर के पसीने में<BR/>मैं ही बरसात के महीने में<BR/><BR/>मेरी तस्वीर आंख का आंसू<BR/>मेरी तहरीर जिस्म का जादू<BR/><BR/>मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में<BR/>मुझको पहचानते नहीं जब लोग<BR/><BR/>मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके<BR/>आसमानों को लौट जाता हूं<BR/><BR/>मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूं<BR/>-निदा फाजली साहब <BR/><BR/>'तुम मुझे टिप्पणी दो, मैं तुम्हें टिप्पणी दूंगा' मैंने टीप दे दी. अब मेरा ब्लॉग भी पढ़ें. हा हा हा (Please dont mind. if we have)<BR/><BR/>दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहां होता है<BR/>सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला<BR/>चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़धानी दे मौला... सर्वे भवन्तु सुखिन:नीरज दीवानhttps://www.blogger.com/profile/14728892885258578957noreply@blogger.com